मौर्य वंश का इतिहास विस्तार में :- History of Maurya Dynasty in Hindi

Mr. Parihar
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मौर्य साम्राज्य भारत के इतिहास मे सबसे पहला बड़ा साम्राज्य था। यह प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली और महान राजवंश था। मौर्य वंश ने भारत पर 321 ई० पू० से 185 ई० पू० यानी लगभग 137 सालों तक शासन किया। इस वंश की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने की थी।
इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य की मदद चाणक्य ने की थी। मौर्य साम्राज्य पूर्व में मगध में गंगा नदी के मैदान से शुरू हुआ था, जोकि आज के बिहार और बंगाल में स्थित है। उस वक्त इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी।

मौर्य वंश की स्थापना

मौर्य वंश की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु और मंत्री चाणक्य की मदद से की थी। उस समय मगध एक शक्तिशाली साम्राज्य था और उस पर नंद वंश का शासन था। मगध को हासिल करने के लिए सिकंदर पंजाब की ओर से चढ़ाई कर रहा था, तब चाणक्य (जिसको लोग कौटिल्य भी कहते है) मगध के राजा घनानंद को बताने की कोशिश की।
जिससे मगध को खत्म होने से बचाया जा सके, लेकिन मगध के सम्राट घनानन्द ने उनकी बात को ठुकरा दिया, और चाणक्य का अपमान भी किया। उसी समय चाणक्य ने प्रतिज्ञा ली कि वो मगध को एक अच्छा राजा दिला कर रहेंगे और घमंडी सम्राट घनानन्द को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ली।
उस समय भारत छोटे छोटे गणों में विभक्त था। चाणक्य को मगध के लिए एक नया राजा ढूँढना था जो उस पर राज कर सके। उस समय कुछ ही शासक जातियाँ थी। जिसमे शक्य और मौर्यों का प्रभाव ज्यादा था। चन्द्रगुप्त इसी जाति के गण प्रमुख का पुत्र था। चन्द्रगुप्त मौर्य के अंदर वो सभी गुण थे जो एक कुशल राजा और योद्धा में होने चाहिए। इन्ही गुणों को देखते हुए चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को अपना शिष्य बना लिया।
चन्द्रगुप्त को चाणक्य ने राजनीति, युद्ध और राज्य के मामलो में पूरी तरह से निपुण कर दिया। चन्द्रगुप्त को पूरी तरह से तैयार करने के बाद चाणक्य ने एक विशाल सेना तैयार की। चन्द्रगुप्त की मदद से चाणक्य ने नंदवंश को उखाड़ फेंका और मौर्य वंश की स्थापना की।
इस प्रकार चाणक्य ने नंदवंश के सम्राट घनानंद को सबक सिखाया; मौर्य साम्राज्य की स्थापना करके चंदगुप्त मौर्य को राजा बनाया और खुद को प्रधानमंत्री बनाया।

मौर्य शासकों के नाम Kings of Maurya Empire

1.   चन्द्रगुप्त मौर्य

चन्द्रगुप्त मौर्य, मौर्य वंश के संस्थापक थे। ये प्राचीन भारत के पहले राजा थे, जिन्होंने पूरे भारत को एक राज्य के अधीन लाने में सफल हुए थे। चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन काल 323 ई० पू० से 298 ई० पू० तक माना जाता है। इन्होंने लगभग 25 सालों तक शासन किया और इस प्रकार उनके शासन का अंत प्रायः 297 ई० पू० में हुआ।
चन्द्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर भारत को सेल्यूकस के गुलामी से आजाद किया। बाद में दोनों शासको ने समझौता कर लिया। इस संधि के फलस्वरूप सेल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से कर दिया। इसका उल्लेख एप्पियानस ने किया है। चंद्रगुप्त के बाद उसके पुत्र बिन्दुसार ने साम्राज्य को संभाला। बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य के सबसे सशक्त राजाओं में एक था।

2.   बिन्दुसार

चन्द्रगुप्त के बाद अगले मौर्य शासक उनके पुत्र बिन्दुसार हुए। बिन्दुसार ने लगभग 298 ई० पू० से 272 ई० पू० तक शासन किया। बिन्दुसार को यूनानियों ने “अमित्रघात” कहा है जिसका अर्थ – शत्रुओं का नाश करने वाला।
बिंदुसार के समय में भी चाणक्य ने प्रधानमंत्री बनकर और चन्द्रगुप्त की तरह बिंदुसार को भी मार्गदर्शन दिया। बिंदुसार ने मौर्य साम्राज्य का दक्षिण में विस्तार किया। बिंदुसार को ‘पिता का पुत्र और पुत्र का पिता’  के नाम से जाना जाता है, क्योंकि वह प्रसिद्ध व पराक्रमी शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र एवं महान राजा अशोक के पिता थे।

3.   सम्राट अशोक

अशोक मौर्य साम्राज्य के एक महान राजा थे। इनका नाम भारत के महान राजाओं में से एक है। इन्होंने लगभग 41 सालों तक शासन किया। बौद्ध परंपरा के अनुसार, अशोक अपने 91 भाइयों की हत्या करके राजगद्दी पर बैठा था। 
अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 8 वर्ष बाद कलिंग पर आक्रमण कर जीत लिया, लेकिन इसमें लाखों की संख्या में लोग मरे जिसे देखकर अशोक कर हृदय परिवर्तन हो गया.  उसने बौद्ध धर्म लिया। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया था। भारत का राष्ट्रीय चिन्ह ‘अशोक चक्र’  तथा शेरों की ‘त्रिमूर्ति’ सारनाथ (वाराणसी) के बौद्ध स्तूप से लिया गया है।

4.   कुणाल 

कुणाल,  सम्राट अशोक और रानी पद्मावती के पुत्र थे। अशोक के बड़े बेटे कुणाल को  उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन इनकी सौतेली माँ ने ईर्ष्या के कारण इनको अंधा कर दिया। कुणाल अपने पिता के शासन काल में तक्षशिला के वायसराय थे। इन्होंने लगभग 8 सालों तक शासन किया।

5.   दशरथ मौर्य

ये सम्राट अशोक के पोते थे। दशरथ मौर्य ने 232 से 224 ई० पू० तक शासन किया। इन्होंने अशोक की धार्मिक और सामाजिक नीतियों को जारी रखा। इनके बाद इनके चचरे भाई सम्प्रति ने राजगद्दी संभाली।

6.   सम्प्रति

इन्होंने 224 – 215 ई० पू० तक मौर्य वंश पर शासन किया। ये अशोक के अंधे पुत्र कुणाल के पुत्र थे, उन्होंने 9 वर्ष तक शासन किया। 

7.  शालिशुक

शालिशुक, मौर्य वंश का शासक था, जिसने  215-202 ई० पू० से लगभग 13 सालों तक शासन किया। ये सम्प्रति मौर्य के उत्तराधिकारी थे। जबकि गर्गि संहिता के युग पुराण खंड में उन्हें झगड़ालू, अधर्मी शासक के रूप में उल्लेख किया गया है।

7.   देववर्मन

शालिशुक के बाद राजगद्दी इनके पुत्र देववर्मन ने संभाली। इसने 202-195 ई० पू० में शासन किया। उन्होंने सात साल तक राज्य किया।

8.   शतधन्नवा

देववर्मन के बाद उनके उत्तराधिकारी शतधन्नवा ने राजगद्दी संभाली। इसने लगभग आठ वर्षो तक (195-187 ई० पू०)  शासन किया। इन्होंने अपने कुछ प्रदेशों को युद्ध के दौरान खो दिया था।

9.   वृहद्रथ

ये मौर्य वंश के अंतिम शासक थे। इन्होंने 187 ई० पू० से 185 ई० पू० तक शासन किया। वृहदृथ को इनके एक मंत्री ने मार दिया और शुंग नाम के एक नये साम्राज्य की स्थापना की।

मौर्य वंश की सैन्य व्यवस्था  

मौर्य वंश की सैन्य व्यवस्था छः समितियों में विभक्त थी। प्रत्येक समिति में पाँच सैन्य विशेषज्ञ होते थे। पैदल सेना, अश्‍व सेना, गज सेना, रथ सेना तथा नौ सेना की व्यवस्था थी। सैनिक प्रबन्ध का सर्वोच्च अधिकारी “अन्तपाल” कहलाता था। मेगस्थनीज के अनुसार, चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल,  50000 अश्‍वारोही, 9000 हाथी तथा 800 रथों थे।

प्रांतीय प्रशासन

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने शासन को सही रूप से चलाने के लिए मौर्य साम्राज्य को चार प्रांत में विभक्त कर दिया, जिन्हें चक्र कहा जाता था। इन प्रांतों को सम्राट के प्रतिनिधि द्वारा संचालित किया जाता था। सम्राट अशोक के काल में प्रांतों की संख्या पाँच हो गई थी।

नगर प्रशासन

मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य शासन की नगरीय प्रशासन छः समिति में विभक्‍त था। ये 6 समितियों इस प्रकार है-
  1. प्रथम समिति- उद्योग शिल्पों का निरीक्षण करता था।
  2. द्वितीय समिति- विदेशियों की देखरेख करता है।
  3. तृतीय समिति- जनगणना।
  4. चतुर्थ समिति- व्यापार वाणिज्य की व्यवस्था।
  5. पंचम समिति- विक्रय की व्यवस्था, निरीक्षण।
  6. षष्ठ समिति- बिक्री कर व्यवस्था।

मौर्य वंश का पतन

मौर्य वंश के पतन का मुख्य कारण अशोक के बाद आये अयोग्य उत्तराधिकारी थे। इस वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या पुष्यमित्र शुंग ने करके समाप्त कर दी। इस सामाज्य के पतन के अन्य कारण – प्रशासन का अत्यधिक केन्द्रीय करण, राष्ट्रीय चेतना का अभाव, आर्थिक एवं सांस्कृतिक असमानताएँ, प्रांतीय शासकों के अत्याचार, करों की अधिकता।
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4Comments

  1. Sir bhut hi achha itihas btaya thank you sir g

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  2. Bahut khub sir.
    Apke dwaara pesh ki history muje psand aayi
    Ambedker rights log ye itihas psand krenge. 😊😊😊 from /sirsa haryana

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