अयोध्या सिंह उपाध्याय का जीवन परिचय और कविताएँ | Ayodhya Singh Upadhyay ‘Hari Oudh' Biography In Hindi

Mr. Parihar
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Ayodhya Singh Upadhyay ‘Hari Oudh' Biography and Poems In Hindi 

हिंदी भाषा के मशहूर साहित्यकार "अयोध्या सिंह उपाध्याय" 'हरिऔध' ने हिंदी कविता के इतिहास में अपनी अहम भूमिका निभाई है। संस्कृत काव्य शैली में हरिऔध ने "प्रियप्रवास" की रचना की तो वहीं आम बोलचाल की भाषा में "वैदेही वनवास" की रचना की। "चोखे चौपदी" और "चुभते चौपदी" उर्दू मुहावरे शैली के बेहतरीन उदाहरण हैं। इसी प्रकार की अनेक रचनाएं हरिऔध के द्वारा रचित की गई हैं, जिनके फलस्वरूप इन हिंदी भाषा को आबाद करने वाला कवि कहा जाता है। आइए एक नजर डालते हैं "हरिऔध' की काव्य शैली और हिंदी भाषा साहित्य के जगत में उनके योगदान पर-

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जीवन परिचय

हिंदी साहित्य के "सार्वभौम कवि" के रूप में जाने जाने वाले "हरिऔध" का जन्म 15 अप्रैल 1865 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के निजामाबाद नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम "पंडित भोलानाथ उपाध्याय" था। प्रारंभिक शिक्षा निजामाबाद एवं आजमगढ़ में हुई। 5 वर्ष की उम्र में इनके चाचा जी ने इन्हें फारसी पढ़ाना शुरू कर दिया था। हरिऔध की मिडिल परीक्षा निजामाबाद से हुई इसके पश्चात वे क्वींस कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ने के लिए चले गए लेकिन उनकी तबीयत ने साथ नहीं दिया उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। वह घर पर रहने लगे, घर पर रहकर हरिऔध ने संस्कृत, हिंदी, उर्दू फारसी और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन किया। वर्ष 1884 में इनका विवाह निजामाबाद में निर्मला कुमारी के साथ संपन्न हुआ।


"हरिऔध" की प्रमुख कृतियां

"विद्यावाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित हरिऔध ने हिंदी साहित्य का विकास तथा आदि ग्रंथों की रचना की है उनके कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ इस प्रकार से हैं-

प्रियप्रवास, कवि सम्राट, वैदेही वनवास, परिजता, रस कलश, चुभते चोपदे, ठेठ हिंदी का ठाठ, अधखिला फूल, रुकमणी परिणय, और हिंदी भाषा साहित्य का विकास।


 



"हरिऔध" द्वारा रचित बाल साहित्य

बाल विभव, बाल विलास, फूल पत्ते, चंद्र खिलौना, खेल तमाशा, उपदेश कुसुम, बाल गीतावली, चांद सितारे, पद्य प्रसून


"हरिऔध" की भाषा शैली

अपनी रचनाओं में हरिऔध ने विभिन्न शैलियों का समिश्रण किया है। इनकी अधिकांश रचनाएं खड़ी बोली में है उनकी कविताओं में ब्रजभाषा और खड़ी बोली का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। उर्दूफारसी के शब्दों से युक्त हरिऔध की भाषा शैली प्रौढ़प्रांजल और आकर्षक है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की अधिकता देखने को मिलती है। नवीन और प्रचलित शब्दों से युक्त हरिऔध की रचनाओं में भाषा का अद्भुत अधिकार देखने को मिलता है उनके काव्यों में संपूर्ण रस की प्रधानता और छंद योजनाओं की पर्याप्त विविधता भी देखने को मिलती है। इसके अतिरिक्त अलंकार प्रिय रीतिकालीन प्रभाव हरिऔध की रचनाओं में देखने को मिलता है।

"हरिऔधकी काव्य शैली इस प्रकार हैं

प्रियप्रवाससंस्कृत काव्य शैली में रचित ग्रंथ है।

रस कलशरीतिकालीन अलंकरण शैली में

वैदेही वनवासआधुनिक युग की सरल हिंदी में

चुभते चौपदे और चोख -चोपदों उर्दू की मुहावरेदार शैलियों में रचित है।

 

हिंदी भाषा को आबाद करने में "हरिऔधका योगदान

हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार होने के कारण हरिऔध को दो बार "हिंदी साहित्य सम्मेलनका सभापति बनाया गया जिसमें उन्हें "विद्यावाचस्पतिकी उपाधि से सम्मानित किया गया। "प्रियप्रवासहरिऔध का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम "महाकाव्यहै और इससे मलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। प्रियप्रवास में कृष्ण के  मथुरा गमन का मार्मिक वर्णन है। कृष्ण के वियोग में सारा ब्रज दुखी है। राधा की स्थिति और भी अकथनीय है। पुत्र वियोग में यशोदा का करुण चित्र हरिऔध ने खींचा है जो पाठक के हृदय  को द्रवीभूत करता है।

हरिऔध ने गद्य और पद्य के माध्यम से हिंदी भाषा को आबाद किया। हरिऔध ने सर्वप्रथम खड़ी बोली में काव्य रचना करके यह सिद्ध किया कि उनमें भी ब्रजभाषा के समान खड़ी बोली की कविता के समान सरसता और मधुरता  सकती है।समस्त गुणों से परिपूर्ण हरिऔध को एक सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। प्रियप्रवास की काव्यगत विशेषताओं के कारण प्रियप्रवास को हिंदी महाकाव्य में "माइलस्टोन की संज्ञा दी गई है।

 

"हरिऔधकी काव्यगत विशेषताएं

हरिऔध की काव्यगत विशेषताओं की प्रशंसा करते हुए निराला जी ने उन्हें हिंदी का सार्वभौमिक कवि कहा है। वह खड़ी बोलीउर्दू के मुहावरेब्रजभाषाकठिन सरल सब प्रकार की कविताओं की रचना कर सकते हैं। प्राचीन और आधुनिक भावों के मिश्रण से उनके काव्य में एक अद्भुत चमत्कार उत्पन्न होता है। वर्ण विषयवियोग-वात्सल्य वर्णनलोक सेवा की भावनाप्रकृति चित्रण इनकी काव्य शैली के प्रमुख विषय रहे हैंजो सरलस्वभावी और हिर्दयग्राही भाषा में रचित हैं।

आज हिंदी भाषा को लगभग 30 करोड़ से अधिक लोग बोल रहे हैं। हिंदी की खड़ी बोली के विकास में हरिऔध का ऐतिहासिक योगदान रहा है। एक अमेरिकन "इनसाइक्लोपीडियाने उनके परिचय में उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ कवि रेखांकित किया है। यदि "प्रियप्रवासखड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है तो हरिऔध को खड़ी बोली का प्रथम "महाकविकहा जा सकता है।


 अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ कविता/कविताएँ,  Ayodhya Singh Upadhyay Poems In Hindi

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