गुणगान - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की कविता

Mr. Parihar
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 गुणगान - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की कविताएँ


गणपति गौरी-पति गिरा गोपति गुरु गोविन्द।

गुण गावो वन्दन करो पावन पद अरविन्द।1।


देव भाव मन में भरे दल अदेव अहमेव।

गिरि गुरुता से हैं अधिक गौरव में गुरुदेव।2।


पाप-पुंज को पीस गुरु त्रिविध ताप कर दूर।

हैं भरते उर-भवन में भक्ति-भाव भरपूर।3।


हर सारा अज्ञान-तम बन भवसागर-पोत।

गुरु तज उर में ज्ञान को कौन जगावे जोत।4।


जनरंजन होता नहीं कर-गंजन तम-मान।

दृग-रुज-भंजन जो न गुरु करते अंजन दान।5।


कौन बिना गुरु के हरे गौरव-जनित-गरूर।

करे समल मानस विमल बने सूर को सूर।6।


बिना खुली जन आँख को खोल न पाता आन।

जानकार गुरु के बिना रहता जगत अजान।7।


बाद क्यों न गुरु से करें चेले कलि अनुरूप।

रीति न जानत विनय की हैं अविनय के रूप।8।


गुरु-सेवा करते रहें गहें न उनकी भूल।

जो न चढ़ावें फूल हम तो न उड़ावें धूल।9।


होता है सिर को नवा नर जग में सिरमौर।

बनता है बन्दन किये बन्दनीय सब ठौर।10।

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