वो बदनसिंह का देवकीनन्दन महाराजा सूरजमल
- जिसने बार बार दिल्ली में घुसकर मुगलों को फोड़ा था,
- जिसके खौफ से अब्दाली ने मथुरा वृन्दावन छोड़ा था,
- जिसके कारण हिंदुआ ध्वज शान से लहराता था,
- वो बदन सिंह का देवकीनन्दन महाराजा सूरजमल कहलाता था,
- जिसके भालों की नौकों से सलावत खां घबराया था
- होकर पराजित दुष्ट ने हिन्दुओ के आगे शीश नवाया था
- आगरा के लाल किले पर जिसने भगवा फहराया था
- ताजमहल की कब्रो पर जिसने घोड़ा बन्धवाया था
- पठान रुहेला अफगान जिसके नाम से ही घबराता था
- वो बदन सिंह का देवकी नन्दन महाराजा सूरजमल कहलाता था।
- उषा मस्जिद को जिसने फिर से मन्दिर बनवाया था
- मथुरा वृन्दावन के घाटों को फिर से जिसने सजवाया था
- बगरू के महलों में जिसकी धाक गूंजती थी
- विजयश्री जिसके रण में सदा चरण चूमती थी
- दिल्ली का वजीर भी जिसके आगे नतमस्तक रहता था
- वो बदन सिंह का देवकी नन्दन महाराजा सूरजमल कहलाता था।
- आतंक भरे मेवात ने पहली बार सांस चैन की ली थी
- भारतभूमि ने अब बहुत ज्यादती सहन कर ली थी
- जिसके भालों के वार से असद खां दर्द से कहराता था
- जिसके शासन में अलीगढ़ शहर रामगढ़ कहलाता था।
- क्षत्रेपन की शान था वो,रण केसरिया हो जाता था
- वो बदन सिंह का देवकीनन्दन महाराजा सूरजमल कहलाता था
- जिसका लोहागढ़ सदा अजेय रहा शान से इतराने को
- कितने ही किले महल बने है ऐश्वर्य उनका बतलाने को
- न जाने उसने रणभूमि में कितनो को धूल चटाई थी
- उत्तर भारत में फिर से सनातन की धाक जमाई थी
- राम कृष्णवंशी यौद्धा था वो बृजराज कहलाता था
- वो बदन सिंह का देवकी नन्दन महाराजा सूरजमल कहलाता था।
- वह अबला, गौ, ब्राह्मण-संतो का ही तो रक्षक था
- उसका भाला धर्मविरोधी दुष्टों का ही तो भक्षक था
- मुसीबत में जो फंसा हुआ उसकी छाया में ही तो आता था
- उसकी शरण में आया हुआ तो ठूंठ भी हरा हो जाता था
- जिसके कारण हिंदुआ ध्वज शान से लहराता था
- वो बदन सिंह का देवकीनन्दन महाराजा सूरजमल कहलाता था।
सम्राट सूरज मल महाराजा सूरजमल जाट
13 फरवरी 1707 बदन सिंह घर जन्म पाया।सन 1733 सूरजमल ने गढ भरतपुर बसाया।।वीरता धीरता चातुर्य से सबको लोहा मनवाया ।अजय योद्धा का परचम विश्व भर में लहराया।।वो जाट वीर था सदा सर्वधर्म हितकारी ।हिन्दू मुस्लिम सब प्रजा थी उनको प्यारी ।।25 वर्ष की उम्र में सोघर जीत आया।अजेय दुर्ग लोहागढ़ का निर्माण करवाया।।अब आ गई बागडोर सूरजमल के हाथ।भरतपुर का हर वासी हो गया सनाथ।।घनघोर संकट भी डिगा नहीं पाए वीर को ।सूझबूझ से बदल दिया राज्य की तकदीर को ।।सन 1748 का ऐतिहासिक था बागडू रण ।।काम लिया सूरजमल ने बुद्धि चातुर्य क्षण-क्षण।बागड़ू का वह युद्ध बेमेल था सामने थी सेना भारी।लेकिन बुद्धि का खेल था,सू रजमल ने बाजी मारी ।।एक तरफ थे बड़े-बड़े मराठा राजपूत योद्धा।दूसरी तरफ सूरजमल अकेले ने सब को रौंदा।।सूरजमल के रण कौशल से हारी बाजी पलट गई।जाट शेरों से डर के मारे शत्रु सेना पीछे हट गई ।।ईश्वर सिंह को मिली राजगद्दी और सूरजमल को नाम ।जाट सेना ने दुश्मन का कर दिया काम तमाम।।सन 1750 मीर बख्शी को चारों ओर से घेरा ।दुश्मन के आजू-बाजू में था सूरजमल का डेरा।।मीर बख्शी मांग रहा था संधि की भीख ।सब कह रहे थे सूरजमल से ले तू सीख ।।रुहेलो के विरुद्ध जाटों ने वीरता दिखलाई।सूरजमल ने बल्लभगढ़ की समस्या सुलझाई ।।मुगल बादशाह की सेना बड़ी लाचार थी।वीर सूरजमल की सेना तेजस्वी और खूंखार थी।।मुगल मराठा संयुक्त सेना आ धमकी थी ।लेकिन वीर सूरजमल की बुद्धि फिर चमकी थी।।बुद्धि चातुर्य का उपयोग भरपूर किया ।दुश्मन को संधि करने को मजबूर किया ।।मुगल मराठा विशाल सेना काम ना आई।जाटों ने बुद्धि बल से उन को धूल चटाई।।भोगी अहमदशाह अब्दाली का जी ललचाया।उसने आकर दिल्ली में आतंक मचाया ।।जाट राज्य को लूटने का ख्याल आया।उसने सूरजमल को कर देने का संदेश भिजवाया ।।जवाहर सिंह ने अफगान टुकड़ी को हराया ।अब अब्दाली ने लूटपाट का हुक्म फरमाया ।।मथुरा में चहुंओर तोपों का धुआं छाया।अब्दाली सूरजमल के किलों को जीत नहीं पाया ।।न भेद न कोई जीत का मौका आया ।उसने हार कर कंधार का मार्ग अपनाया।।पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 में थी छाई ।राजपूत देख रहे थे तटस्थ चुपचाप लड़ाई ।।उनकी विलासिता और दूरदर्शिता आड़े आई ।वीर सूरजमल ने फिर तलवार चमकाई।।जाटों की बहादुरी थी दुनिया में छाई ।शत्रु सेना जाटों की बहादुरी से घबराई ।।सूरजमल वीर था बड़ा बुद्धिमानी ।उसने सदा प्रजा की रक्षा की ठानी ।।सभी धर्म पंथ थे उसके लिए समान।।नहीं उसने किया किसी का अपमान।।हर कोई सूरजमल की शरण आया ।किसी को चौखट से वापस नहीं लौटाया।।61 में जाटों ने फिर आगरा को जय किया।वीर गोकुला की शहीदी का बदला लिया ।।उस जाट वीर सूरजमल ने हर युद्ध जीता था ।उसके बिना खुद इतिहास का खजाना रीता था ।।सन 1763 में वह वीर स्वर्ग सिधारा था।हर इतिहासकार ने उसको पुकारा था ।।उसका इतिहास विश्व पटल पर छाया था ।हर कोई उसकी गाथा लिखने को ललचाया था ।।किसी ने लिखी कविताएं किसी ने गीत।हजारों संदेश देती है उसकी एक एक जीत ।।उनकी वीरता कभी शब्दों में सिमट नहीं पाएगी ।मैंने एक कविता लिखी दुनिया लिखी लिखती जाएगी।।वीर सूरजमल हिंदुस्तान का आखिरी सम्राट था।वह शूरवीर बुद्धिमान तेजस्वी जाट था।।By Ram Lal Jani
कविताएं! By Balveer Ghintala Tejabhakt
- बच रही थी जागीरें जब, बहु बेटियों के डोलों से,
- तब एक सूरज निकला, ब्रज भौम के शोलों से,
- दिन नही मालूम मगर, थी फरवरी सत्रह सो सात,
- जब पराक्रमी बदन के घर, पैदा हुआ बाहुबली जाट,
- था विध्वंश था प्रलय, वो था जिता जागता प्रचंड तूफां,
- तुर्कों के बनाये साम्राज्य का, मिटा दिया नामो निशां,
- खेमकरण की गढी पर, बना कर लोहागढ ऊंचा नाम किया,
- सुजान नहर लाके उसने, कृषकों को जीवनदान दिया,
- बात है सन् 1748 की, जब मचा बगरू में हाहाकार,
- 7 रजपूती सेनाओ का, अकेला सूरज कर गया नरसंहार,
- इस युद्ध ने इतिहास को, उत्तर भारत का नव यौद्धा दिया,
- मुगल मराठों का कलेजा, अकेले सूरज ने हिला दिया,
- मराठा मुगल रजपूतो ने, मिलकर एक मौर्चा बनाया,
- मगर छोटी गढी कुम्हेर तक को, यह मौर्चा जीत न पाया,
- घमंड में भाऊ कह गया, नहीं चाहिए जाटों की ताकत,
- मराठों की दुर्दशा बता रहा, तृतीय समर ये पानीपत,
- अब्दाली के सेना ने जब, मराठों की औकात बताई,
- रानी किशोरी ने ही तब, शरण में लेके इनकी जान बचाई,
- दंभ था लाल किले को खुद पे, कहलाता आगरे का गौरव था,
- सूरज ने उसकी नींव हीला दी, जाटों की ताकत का वैभव था,
- बलशाली था हलधर अवतारी था, था जाटों का अफलातून,
- जाट प्लेटो गजमुखी वह, फौलादी जिस्म गर्वीला खून,
- हारा नहीं कभी रण में, ना कभी धोके से वार किया,
- दुश्मन की हर चालों को, हंसते हंसते ही बिगाड़ दिया,
- ना केवल बलशाली था, बल्कि विधा का ज्ञानी था,
- गर्व था जाटवंश के होने का, न घमंडी न अभिमानी था,
- 25 दिसंबर 1763 में, नजीबद्दीन से रणसमर हुआ,
- सहोदरा की माटी में तब, इसका रक्त विलय हुआ,
- 56 वसंत की आयु में भी, वह शेरों से खुला भिड़ जाता था,
- जंगी मैदानों में तलवारों से, वैरी मस्तक उड़ा जाता था,
- वीरों की सदा यह पहचान रही है, रणसमर में देते बलिदान है,
- इस सूरज ने वही इतिहास रचा, शत शत तुम्हें प्रणाम है,
- अमर हो गया जाटों का सूरज, दे गया गौरवगान हमें,
- कर गया इतिहास उज्ज्वल, दे गया इक अभिमान हमें,
- 'तेजाभक्त बलवीर' तुम्हें वंदन करे, करे नमन चरणों में तेरे,
- सदा वैभवशाली तेरा शौर्य रहे, सदा विराजो ह्रदय में मेरे,
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कविताएं! By Balveer Ghintala Tejabhakt
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जंजीर गुलामी की जकडी, विषबेल चतुर्दिश फैली थी। अफगानों की करतूतो से, हिंद की सुचिता मैली थी।।
तब एक एक राजाओं ने, संधियां करना शुरू किया। लोहागढ पर दुख के अंबुद ने, घनघोर उमड़ना शुरू किया।।
जिस लोहागढ को सींचा था, गोकुल, चूड़ा के रक्तउबालों ने। जिस लोहागढ को पाला था, बदनसिंह जैसे मतवालों ने।।
जिस लोहागढ की चिंगारी ने, त्रिसेना को धूल चटाई थी। वो साधारण सा मनुज नहीं, सुरज की ज्वाला जमीं-उतर आई थी।।
हय पर सवार मर्दाने ने, कर में कृपाण को साध लिया। भीषण निनाद गरज उठा, निज सहादरा को गुंजाय दिया।।
वो थका नहीं वो रुका नहीं, अरिमर्दन करता जाता था । अरु काट काट अफगानों को , हुंकारे भरता जाता था।।
वो नव तुरंग पर चढ़ा बढ़ा, यों लड़ा कि ज्यों भीषण ज्वाला। पर रोक पाया ना पीठ वार, जो वैरी ने था कर डाला।।
तब घायल हुआ सिंह पर, धोखे से अरि ने वार किया। मिल गई वीरगति सूरज को, माटी का कर्ज उतार दिया।।
सूरज तो चला गया लेकिन, इक प्रश्न बाद में जिंदा था। सकल नरेशों के कुकृत्यों पर, ये हिंद सकल शर्मिंदा था।।
उस समय अगर कुछ रजवाड़े, सूरज का साथ निभा जाते। पानीपत में ही हम सब, दिल्ली को दुल्हन बना लाते।।
अफगानों पर मिलती विजय मगर, कुछ अपनों से ही हारा गया। कुछ गिदड़ वंशों की गद्दारी , अपने सूरज को अस्ता गया।।
हे सूरज! हैं नाज हमें, नाज हमें हिंद के उस बाहुबल पर। 'तेजाभक्त' का स्वीकारो वंदन, हैं नाज हमें गढ लोहाचंल पर।।
- और कविताएँ
जंजीर गुलामी की जकडी, विषबेल चतुर्दिश फैली थी। अफगानों की करतूतो से, हिंद की सुचिता मैली थी।।
तब एक एक राजाओं ने, संधियां करना शुरू किया। लोहागढ पर दुख के अंबुद ने, घनघोर उमड़ना शुरू किया।।
जिस लोहागढ को सींचा था, गोकुल, चूड़ा के रक्तउबालों ने। जिस लोहागढ को पाला था, बदनसिंह जैसे मतवालों ने।।
जिस लोहागढ की चिंगारी ने, त्रिसेना को धूल चटाई थी। वो साधारण सा मनुज नहीं, सुरज की ज्वाला जमीं-उतर आई थी।।
हय पर सवार मर्दाने ने, कर में कृपाण को साध लिया। भीषण निनाद गरज उठा, निज सहादरा को गुंजाय दिया।।
वो थका नहीं वो रुका नहीं, अरिमर्दन करता जाता था । अरु काट काट अफगानों को , हुंकारे भरता जाता था।।
वो नव तुरंग पर चढ़ा बढ़ा, यों लड़ा कि ज्यों भीषण ज्वाला। पर रोक पाया ना पीठ वार, जो वैरी ने था कर डाला।।
तब घायल हुआ सिंह पर, धोखे से अरि ने वार किया। मिल गई वीरगति सूरज को, माटी का कर्ज उतार दिया।।
सूरज तो चला गया लेकिन, इक प्रश्न बाद में जिंदा था। सकल नरेशों के कुकृत्यों पर, ये हिंद सकल शर्मिंदा था।।
उस समय अगर कुछ रजवाड़े, सूरज का साथ निभा जाते। पानीपत में ही हम सब, दिल्ली को दुल्हन बना लाते।।
अफगानों पर मिलती विजय मगर, कुछ अपनों से ही हारा गया। कुछ गिदड़ वंशों की गद्दारी , अपने सूरज को अस्ता गया।।
हे सूरज! हैं नाज हमें, नाज हमें हिंद के उस बाहुबल पर। 'तेजाभक्त' का स्वीकारो वंदन, हैं नाज हमें गढ लोहाचंल पर।।
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