परिहार राजपूत ठिकाना, Parihar Rajput Kuldevi, परिहार का गोत्र क्या है
परिहार : यह राजकुल जाटों के अन्दर आगरा-मथुरा के जिलों में पाया जाता है। परिहार नाम नहीं, किन्तु इस कुल (गोत्र) की उपाधि है। परन्तु वे इसी नाम से मशहूर हैं। इनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुराणों तथा अन्य ग्रन्थों में जो विचित्र बातें लिखी हैं, उनसे भी यही बात सिद्ध होती है कि परिहार उपाधि वाची शब्द है। कहा जाता है कि आबू के यज्ञ से सर्वप्रथम जो पुरुष पैदा हुआ, उसे प्रतिहार (द्वारपाल) का काम दिया। द्वारपाल होने के कारण ही वह परिहार कहलाया।
Ref : जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-145
Ref : जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-145
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दूसरे ढंग से यों भी कहा जाता है कि अश्वमेध यज्ञ के समय श्री लक्ष्मणजी द्वारपाल रहे थे, अतः उनके वंशज प्रतिहार अथवा परिहार कहलाये। राजपूतों में जो इस समय परिहार हैं, किन्तु गूजरों में जो परिहार हैं, वह कहां से आये, तथा यह नाम क्यों पड़ा, इसका निर्णय उन्होंने कुछ नहीं किया। डाक्टर भांडारकर तथा स्मिथ उन्हें विदेशी मानते हैं। उनका कहना है कि आबू में इन जातियों को आर्य-धर्म में दीक्षित किया गया ।
यह कथन उस हालत में मान लिया जाता जब कि परिहारों में जाटों का अस्तित्व न होता। जाट जाति के अन्दर उनका होना साबित करता है कि वे पहले से ही आर्य हैं और भारतीय हैं। क्योंकि आबू के यज्ञ से तो उन्हीं परिहारों का तात्पर्य है जो राजपूत हैं। यह सर्वविदित बात है कि जाट शब्द राजपूत शब्द से पुराना है। आबू-यज्ञ वाली घटना सही है, किन्तु यह सही नहीं कि वे विदेशी हैं। यज्ञ द्वारा दीक्षित होकर गूजरों में से राजपूत बने हों तो भारतीय हैं और गूजरों में जाटों से गए हों तो भी भारतीय हैं। बौद्ध-काल में जितना समूह उनमें से राजपूतों में (आबू महायज्ञ के महोत्सव के समय) चला गया, वह राजपूत-परिहार और जो पुराने नियमों के मानने वाले शेष रह गए, वे जाट-परिहार और गूजर-परिहार हैं।
इस राजवंश की उत्पत्ति, प्राचीन कालीन ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ज्ञात होती है। अपने स्वर्णकाल साम्राज्य पश्चिम में सतलुज नदी से उत्तर में हिमालय की तराई और पुर्व में बंगाल-असम से दक्षिण में सौराष्ट्र और नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। सम्राट मिहिर भोज, इस राजवंश का सबसे प्रतापी और महान राजा थे। अरब लेखकों ने के काल को सम्पन्न काल बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि राजवंश ने भारत को अरब हमलों से लगभग ३०० वर्षों तक बचाये रखा था। वर्तमान में इस राजवंंश के मूलतः ठीकाने जालोर जिले ( Panseri , सुरजवाड़ा , गुंदाउ में है परिहार और प्रति हरो को एक ही माना जाता है और इनका मूलतः सबसे बड़ा गांव छायन भी हैं जो जैसलमेर जिले में है पहले इनका राज मंडोर में था नागभट्ट नागभट्ट2 और मिहिर भोज जैसे शासक भी इसी वंश से संबंधित है।।
यह कथन उस हालत में मान लिया जाता जब कि परिहारों में जाटों का अस्तित्व न होता। जाट जाति के अन्दर उनका होना साबित करता है कि वे पहले से ही आर्य हैं और भारतीय हैं। क्योंकि आबू के यज्ञ से तो उन्हीं परिहारों का तात्पर्य है जो राजपूत हैं। यह सर्वविदित बात है कि जाट शब्द राजपूत शब्द से पुराना है। आबू-यज्ञ वाली घटना सही है, किन्तु यह सही नहीं कि वे विदेशी हैं। यज्ञ द्वारा दीक्षित होकर गूजरों में से राजपूत बने हों तो भारतीय हैं और गूजरों में जाटों से गए हों तो भी भारतीय हैं। बौद्ध-काल में जितना समूह उनमें से राजपूतों में (आबू महायज्ञ के महोत्सव के समय) चला गया, वह राजपूत-परिहार और जो पुराने नियमों के मानने वाले शेष रह गए, वे जाट-परिहार और गूजर-परिहार हैं।
एतिहासिक और पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार॥
परिहार' पड़िहार/प्रतिहार.एक क्षत्रिय वंश है। इस गोत्र के लोग मुख्यतः भारत में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं गुजरात निवास करते हैं। इन्हें अग्निवंशी है।इतिहास में समुपलब्ध साक्ष्यों तथा भविष्यपुरांण में समुपवर्णित विवेचन कर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय बनारस के विद्वानों के द्वारा बतौर प्रमाण यजुर्वेदसंहिता, कौटिल्यार्थशास्त्र, श्रमद्भग्वद्गीता, मनुस्मृति, ऋकसंहिता पाणिनीय अष्टाध्यायी, याज्ञवल्क्यस्मृति, महाभारत, क्षत्रियवंशावली, श्रीमद्भागवत, भविष्यपुरांण इत्यादि में भी परिहार एवं विन्ध्य क्षेत्रीय वरगाही उपाधि धारी परिहारों का वर्णन मिलता है। जो ध्रुव सत्य है। परिहार वंश में केवल एक ही उपाधि प्रदान की गई थी। जो राजा रामचन्द्र बाघेल द्वारा 1562 ई . में श्री शेरबहादुर सिंह परिहार को दी गई थी। यह वंश मध्यकाल के दौरान मध्य-उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में राज्य करने वाला राजवंश था, जिसकी स्थापना नागभट्ट नामक एक सामन्त ने ७२५ ई॰ में की थी। इस राजवंश के लोग स्वयं को राम के अनुज लक्ष्मण के वंशज मानते थे, जिसने अपने भाई राम को एक विशेष अवसर पर प्रतिहार की भाँति सेवा की।इस राजवंश की उत्पत्ति, प्राचीन कालीन ग्वालियर प्रशस्ति अभिलेख से ज्ञात होती है। अपने स्वर्णकाल साम्राज्य पश्चिम में सतलुज नदी से उत्तर में हिमालय की तराई और पुर्व में बंगाल-असम से दक्षिण में सौराष्ट्र और नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। सम्राट मिहिर भोज, इस राजवंश का सबसे प्रतापी और महान राजा थे। अरब लेखकों ने के काल को सम्पन्न काल बताते हैं। इतिहासकारों का मानना है कि राजवंश ने भारत को अरब हमलों से लगभग ३०० वर्षों तक बचाये रखा था। वर्तमान में इस राजवंंश के मूलतः ठीकाने जालोर जिले ( Panseri , सुरजवाड़ा , गुंदाउ में है परिहार और प्रति हरो को एक ही माना जाता है और इनका मूलतः सबसे बड़ा गांव छायन भी हैं जो जैसलमेर जिले में है पहले इनका राज मंडोर में था नागभट्ट नागभट्ट2 और मिहिर भोज जैसे शासक भी इसी वंश से संबंधित है।।
परिहार क्षत्रिय वंश का परिचय
वर्ण - क्षत्रिय
राजवंश - परिहार वंश
वंश - अग्नि वंश
गोत्र - कौशिक (कौशल, कश्यप)
वेद - यजुर्वेद
उपवेद - धनुर्वेद
गुरु - वशिष्ठ
कुलदेव - श्री रामचंद्र जी , विष्णु भगवान
कुलदेवी - चामुण्डा देवी, गाजन माता
नदी - सरस्वती
तीर्थ - पुष्कर राज ( राजस्थान )
मंत्र - गायत्री
झंडा - केसरिया
निशान - लाल सूर्य
पशु - वाराह
नगाड़ा - रणजीत
अश्व - सरजीव
पूजन - खंड पूजन दशहरा
आदि पुरुष - श्री लक्ष्मण जी
आदि गद्दी - माण्डव्य पुरम ( मण्डौर , राजस्थान )
ज्येष्ठ गद्दी - बरमै राज्य नागौद ( मध्य प्रदेश)
Note : उपरोक्त दी गई सभी जानकारी विभिन्न सामाचार पत्र बेबसाइट आर्टिकल द्वारा प्रदान की गई है॥ यह ब्लाग इसकी सत्यता की कोई गारंटी नहीं लेता है॥
यह पोस्ट में बस विभिन्न मत प्रदान किए गए हैं॥
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Gurjara-Pratihar Dynasty History in Details In Hindi :- गुर्जर-परिहार राजवंश का इतिहास विस्तार में
Parihar/ Pratihar Rajvansh ke Samrat Mihir Bhoj Ka Itihas In Detail :- सम्राट मिहिर भोज का जीवन परिचय
//यज्ञ द्वारा दीक्षित होकर गूजरों में से राजपूत बने हों तो भारतीय हैं और गूजरों में जाटों से गए हों तो भी भारतीय हैं। बौद्ध-काल में जितना समूह उनमें से राजपूतों में (आबू महायज्ञ के महोत्सव के समय) चला गया, वह राजपूत-परिहार और जो पुराने नियमों के मानने वाले शेष रह गए, वे जाट-परिहार और गूजर-परिहार हैं।//
ReplyDeleteइससे अधिक मनगढ़ंत बात कोई नहीं हो सकती । जाटों में परिहार सिर्फ आगरा मथुरा में मिलते हैं और जबकि गुज्जरों में बिल्कुल भी नहीं मिलते । और इन सबके विपरित राजपूतों में परिहार सब जगह मिलते हैं।
परिहार मूल रूप से क्षत्रिय अथवा राजपूत कुल है जो समय समय में कर्म के अनुसार दूसरी जातियों में जाता रहा सामाजिक और आर्थिक कारणों से। जो परिहार राजपूत माली का कर्म करने लगे वो माली बन गए, जो परिहार , जो परिहार राजपूत कुम्हार का काम करने वो कुम्हार बन गए और जो खेती हर हो गए और विदेशी जाट (पूनिया, गोदारा, वाराईच इत्यादि) के साथ मिल गए - वो परिहार राजपूत जाट बन गए।
राजपूत (राजा का पूत) शब्द कर्म बोधक नहीं है, बल्कि क्षत्रियों द्वारा अपनाया कुल बोधक शब्द है --- और क्यूंकि सभी परिहार राजा लक्ष्मण उनके वंशज राजा हरीश चन्द्र की संताने हैं - तो सभी परिहार राजपूत ही हुए । राजपूत अर्थात क्षत्रिय समाज से बाकी समाजों में घुसे भाइयों को यह ज्ञात होना चाहिए , चाहे वो माली परिहार हो, तेली परिहार हो, कुम्हार परिहार हो या जाट परिहार कि आप लोग सभी राजपूत ही हैं - लक्ष्मण वंशी राजा हरीश चन्द्र के वंशज।
भले ही आपकी जातियां मूल परिहार राजपूतों से अलग हो गई हो, आप सभी हमारे ही भाई हैं ।
🙌
Deleteहुकुम श्री अमरेन्द्र सिंह साहब का कहना कटु सत्य है सब क्षत्रिय नहीं हो सकते हमारे पूर्वजों ने बघेल खण्ड की रियासत व भूमि को सुरछित रखने की कठोर प्रतिज्ञा और क्षत्रियता क्या है ये पाठ पढ़ा कर अपने जीवन को रणभूम में नेवच्छवार किए है तब उन्हें वीरता की उपाधि से नवाजा गया जय मां भवानी जय राजपुताना जय परिहार 🚩,⚔️🙏
ReplyDeleteJai maa bhavani 🙏🙏🙏
DeleteJai khangar rajputana ⚔️
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