1. सातवाहन राजवंश की प्रारम्भिक इतिहास (Early History of Satvahan Dynasty):
सातवाहनों का इतिहास शिसुक (शिमुक अथवा सिन्धुक) के समय से प्रारम्भ होता है । वायुपुराण का कथन है कि- ”आन्ध्रजातीय सिन्धुक (शिमुक) कण्व वंश के अन्तिम शासक सुशर्मा की हत्या कर तथा शुंगों की बची हुयी शक्ति को समाप्त कर पृथ्वी पर शासन करेगा ।”
इससे ऐसा लगता है कि उसने शुंगो तथा कण्वों से विदिशा के आस-पास का क्षेत्र जीत लिया होगा । पुराणों के अनुसार शिमुक ने 23 वर्षों तक शासन किया । उसके नाम का उल्लेख नानाघाट चित्र-फलक-अभिलेख में मिलता है ।
अजयमित्र शास्त्री को अभी हाल ही में उसके सात सिक्के प्राप्त हुए हैं । नानाघाट के लेख में उसे ‘राजा शिमुक सातवाहन’ कहा गया है । जैन गाथाओं के अनुसार उसने जैन तथा बौद्ध मन्दिरों का निर्माण करवाया था । अपने शासन के अन्तिम दिनों में वह दुराचारी हो गया तथा मार डाला गया ।
शिमुक की तिथि के विषय में विवाद है । संभवतः उसने प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के द्वितीयार्ध में शासन किया और उसका राज्यकाल सामान्यतः 60 ईसा पूर्व से 37 ईसा पूर्व तक माना जा सकता है । शिमुक के बाद उसका छोटा भाई कन्ह (कृष्ण) राजा बना क्योंकि शिमुक पुत्र शातकर्णि अवयस्क था ।
कृष्ण ने अपना साम्राज्य नासिक तक बढ़ाया । उसके श्रमण नामक एक महामात्र ने नासिक में एक गुहा का भी निर्माण करवाया था । यहां से प्राप्त एक लेख में कृष्ण के नाम का उल्लेख मिलता है । उसने 18 वर्षों तक राज्य किया । कृष्ण की मृत्यु के पश्चात् श्रीशातकर्णि, जो शिमुक का पुत्र था, सातवाहन वंश की गद्दी पर बैठा ।
वह प्रथम शातकर्णि के नाम विख्यात है क्योंकि अपने वंश में शातकर्णि की उपाधि धारण करने वाला वह पहला राजा था । शातकर्णि प्रथम प्रारम्भिक सातवाहन नरेशों में सबसे महान् था । उसने अंगीय कुल के महारठी त्रनकयिरों की पुत्री नायानिका (नागनिका) के साथ विवाह कर अपना प्रभाव बढ़ाया ।
महारठियों के कुछ सिक्के उत्तरी मैसूर से मिलते हैं जिनसे पता चलता है कि वे काफी शक्तिशाली थे तथा नाममात्र के लिये शातकर्णि की अधीनता स्वीकार करते थे । उनके साथ वैवाहिक सम्बन्ध ये शातकर्णि को राजनैतिक प्रभाव के विस्तार में अवश्यमेव सहायता प्रदान किया होगा ।
नायानिका के नानाघाट अभिलेख से शातकर्णि प्रथम के शासन-काल के विषय में महत्वपूर्ण सूचनायें मिलती है । शातकर्णि प्रथम ने पश्चिमी मालवा, अनूप (नर्मदा घाटी) तथा विदर्भ के प्रदेशों की विजय की । विदर्भ उसने शुंगों से छीना तथा दृढ़ समय के लिये उसे अपने नियंत्रण में रखा ।
इसी समय वासिष्ठिपुत्र आनन्द, जो शातकर्णि के कारीगरों का मुखिया था, ने साँची स्तूप के तोरण पर अपना लेख खुदवाया था । यह लेख पूर्वी मालवा क्षेत्र पर उसका अधिकार प्रमाणित करता है । पश्चिमी मालवा पर उसके अधिकार की पुष्टि ‘श्रीसात’ नामधारी सिक्कों से हो जाती है जो क्षेत्र से प्राप्त किये गये हैं ।
इस प्रकार सम्पूर्ण मालवा क्षेत्र उसके अधिकार में था तथा पूर्व की ओर उसका राज्य कलिंग की सीमा को स्पर्श करता था । उत्तरी कोंकण तथा गुजरात के कुछ भागों को जीतकर उसने अपने राज्य में मिला लिया था । शातकर्णि को कलिंग नरेश खारवेल के आक्रमण का भी सामना करना पड़ा ।
हाथीगुम्फा लेख से पता चलता है कि अपने राज्यारोहण के दूसरे वर्ष खारवेल ने शातकर्णि की परवाह न करते हुए पश्चिम की ओर अपनी सेना भेजी । यह सेना कण्णवेणा (वैनगंगा) नदी तक आई तथा असिक नगर में आतंक फैल गया ।
यह स्थान शातकर्णि के ही अधिकार में था । यहाँ की खुदाई से हाल ही में शातकर्णि का सिक्का मिला है । ऐसा प्रतीत होता है कि शातकर्णि ने खारवेल का प्रबल प्रतिरोध किया जिसके फलस्वरूप कलिंग नरेश को वापस लौटना पड़ा होगा ।
यदि खारवेल विजित होता तो इस घटना का उल्लेख महत्वपूर्ण ढंग से उसने अपने लेख में किया होता । खारवेल का आक्रमण एक धावा मात्र था जिसे टालने में शातकर्णि सफल रहा । इस प्रकार शातकर्णि एक सार्वभौम राजा बन गया ।
उसने दो अश्वमेध तथा राजसूय यज्ञों का अनुष्ठान किया । प्रथम अश्वमेध यज्ञ राजा बनने में तत्काल बाद तथा द्वितीय अपने शासनकाल के अन्त में किया होगा । अश्वमेध यज्ञ के बाद उसने अपनी पत्नी के नाम पर रजत मुद्रायें उत्कीर्ण करवायीं ।
इनके ऊपर अश्व की आकृति मिलती है । उसने ‘दक्षिणापथपति’ तथा ‘अप्रतिहतचक्र’ जैसी महान् उपाधियाँ धारण कीं । उसका शासन-काल भौतिक दृष्टि से समृद्धि एवं सम्पन्नता का काल था । शातकर्णि प्रथम पहला शासक था जिसने सातवाहनों को सार्वभौम स्थिति में ला दिया ।
उसकी विजयों के फलस्वरूप गोदावरी घाटी में प्रथम विशाल साम्राज्य का उदय हुआ जो शक्ति तथा विस्तार में गंगा घाटी में शुंग तथा पंजाब में यवन-साम्राज्य की बराबरी कर सकता था । पेरीप्लस से पता चलता है कि एल्डर सैरागोनस एक शक्तिशाली राजा था जिसके समय में सुप्पर तथा कलीन (सोपारा तथा कल्यान) के बन्दरगाह अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार-वाणिज्य के लिये पूर्णरूपेण सुरक्षित हो गये थे ।
इस शासक से तात्पर्य शातकर्णि प्रथम से ही है । प्रतिष्ठान को अपनी राजधानी बनाकर उसने शासन किया । मालवा के ‘सात’ नामधारी कुछ सिक्के मिलते हैं । इनका प्रचलनकर्ता शातकर्णि प्रथम को ही माना जाता है । शातकर्णि की मृत्यु के पश्चात् सातवाहनों की शक्ति निर्बल पड़ने लगी ।
नानाघाट के लेख में उसके दो पुत्रों का उल्लेख हुआ है- वेदश्री तथा शक्तिश्री । ये दोनों ही अवयस्क थे । अत: शातकर्णि प्रथम की पत्नी नायानिका ने संरक्षिका के रूप में शासन का संचालन किया । उसके बाद का सातवाहनों का इतिहास अन्धकारपूर्ण है ।