श्री कृष्ण जन्माष्टमी कथा, जन्माष्टमी कब मनाई जाती है, Story of Krishna Janmashtami
कृष्ण को लोग रास रसिया, लीलाधर, देवकी नंदन, गिरिधर जैसे हजारों नाम से जानते हैं. कृष्ण भगवान द्वारा बताई गई गीता को हिंदू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ और पथ प्रदर्शक के रूप में माना जाता है. कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) कृष्ण जी के ही जन्मदिवस के रूप में प्रसिद्ध है.
Krishna Janamaashtami |
जन्माष्टमी कब मनाई जाती है
मान्यता है कि द्वापर युग के अंतिम चरण में भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था. इसी कारण शास्त्रों में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन अर्द्धरात्रि में श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी मनाने का उल्लेख मिलता है. पुराणों में इस दिन व्रत रखने को बेहद अहम बताया गया है.
जन्माष्टमी व्रत कथा (Janmashtami Vrat Katha):
स्कंद पुराण के मुताबिक द्वापर युग की बात है। तब मथुरा में उग्रसेन नाम के एक प्रतापी राजा हुए। लेकिन स्वभाव से सीधे-साधे होने के कारण उनके पुत्र कंस ने ही उनका राज्य हड़प लिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन थी, जिनका नाम था देवकी। कंस उनसे बहुत प्रेम करता था। देवकी का विवाह वसुदेव से तय हुआ तो विवाह संपन्न होने के बाद कंस स्वयं ही रथ हांकते हुए बहन को ससुराल छोड़ने के लिए रवाना हुआ। जब वह बहन को छोड़ने के लिए जा रहे था तभी एक आकाशवाणी हुई कि देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी। यह सुनते ही कंस क्रोधित हो गया और देवकी और वसुदेव को मारने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तभी वसुदेव ने कहा कि वह देवकी को कोई नुकसान न पहुंचाए। वह स्वयं ही देवकी की आठवीं संतान कंस को सौंप देगा। इसके बाद कंस ने वसुदेव और देवकी को मारने के बजाए कारागार में डाल दिया।
कारागार में ही देवकी ने सात संतानों को जन्म दिया और कंस ने सभी को एक-एक करके मार दिया। इसके बाद जैसे ही देवकी फिर से गर्भवती हुईं तभी कंस ने कारागार का पहरा और भी कड़ा कर दिया। तब भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में कन्हैया का जन्म हुआ। तभी श्री विष्णु ने वसुदेव को दर्शन देकर कहा कि वह स्वयं ही उनके पुत्र के रूप में जन्में हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वसुदेव जी उन्हें वृंदावन में अपने मित्र नंदबाबा के घर पर छोड़ आएं और यशोदा जी के गर्भ से जिस कन्या का जन्म हुआ है, उसे कारागार में ले आएं। यशोदा जी के गर्भ से जन्मी कन्या कोई और नहीं बल्कि स्वयं माया थी। यह सबकुछ सुनने के बाद वसुदेव जी ने वैसा ही किया।
स्कंद पुराण के मुताबिक जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के बारे में पता चला तो वह कारागार पहुंचा। वहां उसने देखा कि आठवीं संतान तो कन्या है फिर भी वह उसे जमीन पर पटकने ही लगा कि वह मायारूपी कन्या आसमान में पहुंचकर बोली कि रे मूर्ख मुझे मारने से कुछ नहीं होगा। तेरा काल तो पहले से ही वृंदावन पहुंच चुका है और वह जल्दी ही तेरा अंत करेगा। इसके बाद कंस ने वृंदावन में जन्में नवजातों का पता लगाया। जब यशोदा के लाला का पता चला तो उसे मारने के लिए कई प्रयास किए। कई राक्षसों को भी भेजा लेकिन कोई भी उस बालक का बाल भी बांका नहीं कर पाया तो कंस को यह अहसास हो गया कि नंदबाबा का बालक ही वसुदेव-देवकी की आठवीं संतान है। कृष्ण ने युवावस्था में कंस का अंत किया।