नीम - सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता

Mr. Parihar
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 नीम - सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताएँ


सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूँ तुझे।

 तुहि जानकर अति लाभकारी हर्ष होता है मुझे॥

 ये लहलही पत्तियाँ हरी, शीतल पवन बरसा रहीं।

 निज मंद मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं॥

 हे नीम! यद्यपि तू कड़ू, नहिं रंच-मात्र मिठास है।

 उपकार करना दूसरों का, गुण तिहारे पास है॥

 नहिं रंच-मात्र सुवास है, नहिं फूलती सुंदर कली।

 कड़ुवे फलों अरु फूल में तू सर्वदा फूली-फली॥

 तू सर्वगुणसंपन्न है, तू जीव-हितकारी बड़ी।

 तू दु:खहारी है प्रिये! तू लाभकारी है बड़ी॥

 है कौन ऐसा घर यहाँ जहाँ काम तेरा नहिं पड़ा।

 ये जन तिहारे ही शरण हे नीम! आते हैं सदा॥

 तेरी कृपा से सुख सहित आनंद पाते सर्वदा॥

 तू रोगमुक्त अनेक जन को सर्वदा करती रहै।

 इस भांति से उपकार तू हर एक का करती रहै॥

 प्रार्थना हरि से करूँ, हिय में सदा यह आस हो।

 जब तक रहें नभ, चंद्र-तारे सूर्य का परकास हो॥

 तब तक हमारे देश में तुम सर्वदा फूला करो।

 निज वायु शीतल से पथिक-जन का हृदय शीतल करो॥

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