गरीब का सलाम ले - गोपाल सिंह नेपाली की कविताएँ
कर्णधार तू बना तो हाथ में लगाम ले
क्रांति को सफल बना नसीब का न नाम ले
भेद सर उठा रहा, मनुष्य को मिटा रहा,
गिर रहा समाज , आज बाजुओं में थाम ले
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
लोग आस में खड़े गली गली के मोड़ पर
एक का विचार छोड़, दृष्टि दे करोड़ पर
अन्यथा प्रतीति बढ़ रही है तोड़-फोड़ पर,
न्याय भी हमें मिले कि नीति भी नहीं हिले
प्यार है मनुष्य से तो रौशनी से काम ले,
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
आँख बन के फूटती न आँसुओं की फुलझड़ी
टूटती कहाँ से फिर गुलामियों की हथकड़ी,
साँस तोड़ती महल से दूर-दूर झोंपड़ी,
किंतु अब स्वराज है, प्रजा के सिर पे ताज है
छाँव दे जहान को, तू अपने सिर पे घाम ले,
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
यह स्वतंत्रता नहीं, कि एक तो अमीर हो,
दूसरा मनुष्य तो रहे मगर फ़कीर हो,
न्याय हो तो आर-पार एक ही लकीर हो,
वर्ग की तनातनी, न मानती है चाँदनी,
चाँदनी लिए चला तो घूम हर मुकाम ले,
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
कर भला गरीब का तो डर न साम्यवाद से,
नाश है प्रयोगवाद का प्रयोगवाद से,
तू स्वतंत्र देश को बचा सदा विवाद से,
यों नई दिशा दिखा, कि दीप की हँसे शिखा,
साम्यवाद भी मिले, तो चूम ग्राम-ग्राम ले,
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
जी रहे जहान में, खान-पान चाहिए,
नित निवास के लिए हमें मकान चाहिए,
चाहिए हज़ार सुख मगर न दान चाहिए,
फूल साम्य का खिला, कुटीर से महल मिला,
घर बसा करोड़ का, करोड़ का प्रणाम ले--
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
राम राज्य है तो मुफ़्त में मिला करे दवा,
मुफ़्त तो पढ़ा करें कि जैसे मुफ्त है हवा,
न्याय मुफ़्त में मिले, बिहार हो कि मालवा,
यों हमें उबार तो, समाज को सिंगार तो,
कोटि-कोटि के हृदय में कर सदैव धाम ले,
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
शक्ति है मिली तो स्वाद-दीन हीन को मिले,
वह मिले कुली-कुली को जो कुलीन को मिले,
सूर्य व्योम को मिले, किरन ज़मीन को मिले,
शक्ति यों पसार दे, व्यक्ति दुःख बिसार दे,
प्यार का हज़ार बार प्यार ही इनाम ले,
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी प्रताप की उतार ले,
बाजुओं में बल अमर हम्मीर का उधार ले,
बुद्धि ले तो अपने ही शिवाजी से उधार ले,
कर्णधार है तो चल, दरिद्र की दिशा बदल,
देश को अमर बना के उम्र कर तमाम ले,
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
यह न कर सके अगर तो तख़्त ताज छोड़ दे,
और के लिए जगह बना, मिज़ाज छोड़ दे,
छोड़ना है कल तुझे हठीले आज छोड़ दे,
आके मिल समाज में कि भाग ले स्वराज में
शांति भोग, किंतु बागडोर से विराम ले,
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!
रहनुमा बने बिना भी उम्र बीत जाएगी,
ताज-तख़्त के बिना भी प्रीति गीत गाएगी,
कोकिला कहीं रहे, वसंत गीत गाएगी,
रास्ता दे भीड़ को, सँवार अपने नीड़ को,
पीपलों की छाँव में, तू बैठ राम-नाम ले--
त्याग का न दाम ले,
दे बदल नसीब तो गरीब का सलाम ले!