झाँसी की रानी की समाधि पर - सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता

Mr. Parihar
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 झाँसी की रानी की समाधि पर -सुभद्रा कुमारी चौहान 


इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी |

जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी ||

यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की |

अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||


यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न-विजय-माला-सी |

उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी |

सहे वार पर वार अंत तक, लड़ी वीर बाला-सी |

आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला-सी |

बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से |

मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से ||

रानी से भी अधिक हमे अब, यह समाधि है प्यारी |

यहाँ निहित है स्वतंत्रता की, आशा की चिनगारी ||


इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते |

उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते ||

पर कवियों की अमर गिरा में, इसकी अमिट कहानी |

स्नेह और श्रद्धा से गाती, है वीरों की बानी ||


बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी |

खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी ||

यह समाधि यह चिर समाधि है , झाँसी की रानी की |

अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||

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