Sanatan Dharm Ya Hindu Dharm Kya h? Janiye Puri Jankari

Mr. Parihar
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हिन्दू 
एक हजार वर्ष पूर्व हिंदू शब्द का प्रचलन नहीं था।
ऋग्वेद में कई बार सप्त सिंधु का उल्लेख मिलता है।
सिंधु शब्द का अर्थ नदी या जलराशि होता है इसी आधार पर एक नदी का नाम सिंधु नदी रखा गया, जो लद्दाख और पाक से बहती है।
ईरानी अर्थात पारस्य देश के पारसियों की धर्म पुस्तक ‘अवेस्ता’ में ‘हिन्दू’ और ‘आर्य’ शब्द का उल्लेख मिलता है।

भाषाविदों का मानना है कि हिंद-आर्य भाषाओं की ‘स’ ध्वनि ईरानी भाषाओं की ‘ह’ ध्वनि में बदल जाती है। आज भी भारत के कई इलाकों में ‘स’ को ‘ह’ उच्चारित किया जाता है। इसलिए सप्त सिंधु अवेस्तन भाषा (पारसियों की भाषा) में जाकर हप्त हिंदू में परिवर्तित हो गया। इसी कारण ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम दिया। किंतु पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोगों को आज भी सिंधू या सिंधी कहा जाता है।
दूसरी ओर अन्य इतिहासकारों का मानना है कि चीनी यात्री हुएनसांग के समय में हिंदू शब्द की उत्पत्ति ‍इंदु से हुई थी। इंदु शब्द चंद्रमा का पर्यायवाची है। भारतीय ज्योतिषीय गणना का आधार चंद्रमास ही है। अत: चीन के लोग भारतीयों को ‘इन्तु’ या ‘हिंदू’ कहने लगे।
सनातन
सनातनमेनमहुरुताद्या स्यात पुनण्रव् ( अधर्ववेद 10/8/23)
अर्थात – सनातन उसे कहते हैं जो , जो आज भी नवीकृत है ।
‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।
यीशु से पहले ईसाई मत नहीं था,
मुहम्मद से पहले इस्लाम मत नहीं था।
श्री कृष्ण की भागवत कथा श्री कृष्ण के जन्म से पहले नहीं थी अर्थात कृष्ण भक्ति सनातन नहीं है ।
श्री राम की रामायण तथा रामचरितमानस भी श्री राम जन्म से पहले नहीं थी अर्थात श्री राम भक्ति भी सनातन नहीं है ।
श्री लक्ष्मी भी, (यदि प्रचलित सत्य-असत्य कथाओ के अनुसार भी सोचें तो), तो समुद्र मंथन से पहले नहीं थी  अर्थात लक्ष्मी पूजन भी सनातन नहीं है ।
गणेश जन्म से पूर्व गणेश का कोई अस्तित्व नहीं था, तो गणपति पूजन भी सनातन नहीं है ।
केवल सनातन धर्मं ही सदा से है, सृष्टि के आरंभ से सृष्टि के अंत |
The term ‘sanaatan’ was mentioned and explained in depth in Vedic literature (Rig Veda) (4-138)
सनातन सत्य
सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह। दोनों ही सत्य है।
अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि।
।ॐ।। पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।- ईश उपनिषद
ॐ =  सच्चिदानंदघन
अदः = वह परब्रह्म
पूर्णम = सब प्रकार से पूर्ण है
इदम = यह (जगत भी)
पूर्ण म = पूर्ण (ही) है
पूर्णात = (क्योंकि) उस पूर्ण से ही
पुर्णम = यह पूर्ण
उदच्यते = उत्पन्न हुआ है
पूर्णस्य = पूर्ण के
पूर्ण म = पूर्ण को
आदाय = निकाल लेने पर (भी)
पूर्ण म = पूर्ण
एव = ही
अविष्यते = बच रहता है ।
व्याख्या : वह सच्चिदानंदघन (ॐ) परब्रह्म पुरुषोत्तम सब प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है ।
यह जगत भी उस परब्रह्म से ही पूर्ण ही है ; क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है ।
इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है ।
उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लेने पर भी वह पूर्ण ही बचा रहता है ।
यही सनातन सत्य है ।
ब्रह्म ही सत्य है।
ब्रह्म शब्द का कोई समानार्थी शब्द नहीं है।
धर्म
It means that such actions, thoughts and practices that promote physical and mental happiness in the world (abhyudaya) and ensure God realization (nishreyas) in the end, are called dharm.
Its earliest record is the Rigveda, which is the record of ancient sages who by whatever means tried to learn the truth about the universe, in relations to Man’s place in relation to the cosmos.
This search has no historical beginning; nor does it have a historical founder.
आर्य 
आर्य समाज के लोग इसे आर्य धर्म कहते हैं, जबकि आर्य किसी जाति या धर्म का नाम न होकर इसका अर्थ सिर्फ श्रेष्ठ ही माना जाता है। अर्थात जो मन, वचन और कर्म से श्रेष्ठ है वही आर्य है। इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था।

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