Madhya Pradesh History and its Information ।। मध्यप्रदेश का इतिहास और उसके जुड़ी कुछ रोचक जानकारी

Mr. Parihar
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मध्यप्रदेश का इतिहास और उसके जुड़ी कुछ रोचक जानकारी।।
भारत देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य Madhya Pradesh – मध्यप्रदेश जिसे “भारत का हृदय” कहा जाता है। इस राज्य का इतिहास, भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विरासत और यहाँ के लोग इसे भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक बनाते हैं। इसकी राजधानी भोपाल है, जो झीलों के शहर के नाम से प्रसिद्ध है।
यह भारत के उन चुनिंदा राज्यों में से एक है जो चारो तरफ से दुसरे राज्यों से घिरा हुआ है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश है। इसके पश्चिम में राजस्थान और गुजरात, दक्षिण में महाराष्ट्र और पूर्व में छत्तीसगढ़ है।
Map of Madhyapradesh

तक़रीबन 320 BCE में चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तरी भारत को एकत्रित किया, जिसमे वर्तमान मध्यप्रदेश भी शामिल था। मौर्य साम्राज्य के सम्राट अशोक ने क्षेत्र पर दृढ़ नियंत्रण रखा। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के लिए साका, कुषाण, सातवाहन और बहुत से स्थानिक साम्राज्यों के बीच पहली से तीसरी शताब्दी CE के बीच लड़ाईयां हुई। शुंगा राजा भागभद्र के दरबार के ग्रीक एम्बेसडर हेलिदोरुस ने विदिशा के पास हेलिदोरुस पिल्लर का भी निर्माण कर रखा है।
पहली शताब्दी BCE से ही उज्जैन पश्चिमी भारत के मुख्य व्यापारी केंद्र रहा है, यह शहर गंगा के मैदान और भारतीय अरेबियन सागर बंदरगाह के रास्ते में बसा हुआ है। पहली से तीसरी शताब्दी CE के बीच उत्तरी डेक्कन के सातवाहन साम्राज्य और पश्चिमी क्षेत्र के साका साम्राज्य के बीच मध्यप्रदेश पर नियंत्रण पाने के लिए घमासान युद्ध हुआ।
सातवाहन के राजा गौतमीपुत्र सताकरनी ने साका साम्राज्य पर जीत प्राप्त की और दूसरी शताब्दी में मालवा और गुजरात पर भी विजय प्राप्त की।
बाद में चौथी और पांचवी शताब्दी में क्षेत्र गुप्त साम्राज्य और दक्षिणी पडोसी वेकतका के नियंत्रण में चला गया। धार जिले की कुक्षी तहसील के बाघ गुफा में पत्थर से बने हुए मंदिर में गुप्त साम्राज्य के अस्तित्व के सबूत दिखाई देते है, साथ ही वहा बने बडवानी शिलालेख तक़रीबन 487 CE के है।
सफ़ेद हंस के आक्रमण से ही गुप्त साम्राज्य का पतन हुआ और इससे राज्य छोटे-छोटे भागो में विभाजित हो गया। 528 में मालवा के राजा यशोधर्मन ने हंस को पराजित किया और उनकी विकासधारा को रोका। बाद में हर्षा (C. 590-647) ने राज्य के उत्तरी भाग पर शासन किया।
आठवी शताब्दी से दसवी शताब्दी तक मालवा पर दक्षिण भारतीय राष्ट्रकूट साम्राज्य ने शासन किया। जब राष्ट्रकूट साम्राज्य के दक्षिण भारतीय सम्राट गोविन्द द्वितीय ने मालवा पर कब्ज़ा कर लिया, तो वहाँ उन्होंने अपने किसी सहयोगी के परिवार को स्थापित किया, जिसे परमार का नाम दिया गया।
मध्यकालीन समय में राजपूत वंश का विकास हुआ, जिसमे मालवा के परमार और बुंदेलखंड के चंदेला भी शामिल थे। चंदेला ने खजुराहो में मंदिरों का निर्माण किया, जो मध्य भारत में हिन्दू मंदिर के वास्तुकला की परिणिति का प्रतिनिधित्व करते है। उत्तरी और पश्चिम मध्य प्रदेश में आज भी गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्यों का बोलबाला है। ग्वालियर में भी कुछ एतिहासिक स्मारक बने हुए है।
मध्यप्रदेश के दक्षिणी भाग जैसे मालवा पर दक्षिण भारतीय पश्चिमी चालुक्य साम्राज्य ने कई बार आक्रमण किया, जिससे मालवा के परमार साम्राज्य पर काफी नियम लगाये गये।
13 वी शताब्दी में उत्तरी मध्यप्रदेश पर तुर्की दिल्ली सल्तनत ने कब्ज़ा कर लिया था। 14 वी शताब्दी के अंत में दिल्ली सल्तनत के ख़त्म होते हुए, स्वतंत्र धार्मिक साम्राज्य की खोज की गयी, जिसमे ग्वालियर का तोमार साम्राज्य और मालवा के मुस्लिक सल्तनत भी शामिल थी।
1531 में गुजरात सल्तनत ने मालवा सल्तनत पर कब्ज़ा का लिया। 1540 में राज्य का ज्यादातर भाग शेर शाह सूरी के नियंत्रण में आ गया और बाद मे हिन्दू राज हेमू ने इसपर कब्ज़ा कर लिया।
1556 में पानीपत के दुसरे युद्ध में अकबर द्वारा हेमू को पराजित किये जाने के बाद, मध्य प्रदेश का ज्यादातर भाग मुघलो के नियंत्रण में आ गया। गोंडवाना और महाकोशल गोंड राजाओ के ही नियंत्रण में रहा, जिन्हें मुग़ल वर्चस्व स्वीकार था लेकिन वे आभासी स्वायत्तता का आनंद ले रहे थे।
1707 में सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद राज्य का मुघलो का नियंत्रण कमजोर हो गया। 1720 और 1760 के बीच मराठाओ ने मध्य प्रदेश के बहुत से भागो पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया।
क्षेत्र के प्रसिद्ध मराठा शासको में महादजी शिंदे, अहिल्याबाई होलकर और यशवंतराव होलकर शामिल थे। तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध के बाद, ब्रिटिशो ने पुरे क्षेत्र का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। क्षेत्र के सभी प्रभुत्व राज्य ब्रिटिश भारत के प्रांतीय राज्य बन चुके थे, जिसपर केंद्रीय भारत एजेंसी का नियंत्रण था।
1857 में राज्य के उत्तरी भाग में तात्या टोपे के नेतृत्व में स्वतंत्रता क्रांति ने जन्म लिया। जबकि ब्रिटिश और प्रिंस रॉयल ने इसे कुचल दिया। राज्य में बहुत सी ब्रिटिश विरोधी गतिविधियाँ हो चुकी है और भारतीय स्वतंत्रता अभियान के समय काफी लोगो ने मिलकर ब्रिटिशो का विरोध किया।
बहुत से प्रसिद्ध नेता जैसे चन्द्रशेखर आजाद, बी.आर.आंबेडकर, शंकर दयाल शर्मा और अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश में हुआ। साथ ही दो प्रसिद्ध गायक, तानसेन और बैजू बावरा का जन्म मध्यप्रदेश में ही हुआ था। प्रसिद्ध पार्श्व गायक किशोर कुमार (खण्डवा) और लता मंगेशकर (इंदौर) भी मध्यप्रदेश के ही रहने वाले है।
भारत की आज़ादी के बाद, भूतपूर्व ब्रिटिश केंद्रीय प्रांत और बरार और मकरी के प्रांतीय राज्य और छत्तीसगढ़ को मिलाकर ‎1 नवम्बर 1956 को मध्यप्रदेश राज्य की स्थापना की गयी, उस समय इसकी राजधानी नागपुर थी।
केंद्रीय भारतीय एजेंसी से ही मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल राज्य की स्थापना की गयी। 1956 में मध्य भारत, विंध्य प्रदेश और भोपाल को मध्य प्रदेश राज्य में शामिल कर लिया गया और मराठी बोलने वाले दक्षिण क्षेत्र विदर्भ में नागपुर जोड़कर इसे बॉम्बे राज्य में शामिल कर लिया गया। सबसे पहले जबलपुर को राज्य की राजधानी बनाया गया लेकिन अंतिम क्षण में राजनितिक दबाव के चलते भोपाल को राज्य की राजधानी बनाया गया। नवम्बर 2000 में मध्य प्रदेश पुनर्गठन एक्ट के तहत राज्य के दक्षिण-पूर्वी भाग को विभाजित कर छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना की गयी।

मध्य प्रदेश के जिले – Districts of Madhya Pradesh

मध्यप्रदेश में कुल 49 जिले हैं वो इस प्रकार –
रायसेन, अगरमालवा, छिंदवाडा, शेओपुर, अनुपूर, रतलाम, खरगोन, जबलपुर, झाबुआ, देवास, उज्जैन, अलीराजपुर, दमोह, दतिया, बेतुल, नरसिंहपुर, मंदसौर, शिवपुरी, कटनी, सीधी, बालाघाट, अशोकनगर, खण्डवा, रेवा, टीकमगढ़, धार, सागर, बरवानी, डिंडोरी, मंडला, सतना, उमरिया, गुना, सीहोर, विदिशा, भिंड, मोरेनाम, सिवनी, भोपाल, हरदा, सिंगरौली, बुरहानपुर, होशंगाबाद, नीमुच, शहडोल, छतरपुर, इंदौर, पन्ना, शाजापुर।

मध्य प्रदेश की नदियाँ – Rivers of Madhya Pradesh

नर्मदा मध्यप्रदेश की सबसे लम्बी नदी इसकी सहायक नदियों में बंजार, तवा, दी मचना, शक्कर, देंवा और सोनभद्रा नदी शामिल है। ताप्ती नदी नर्मदा के ही सामानांतर बहती है और साथ ही यह दरार घाटी से भी होकर बहती है। नर्मदा और ताप्ती नदी में भरपूर मात्रा में पानी भरा हुआ है और मध्य प्रदेश की लगभग सभी जगहों पर यही पानी जाता है। नर्मदा नदी को भारत में काफी पवित्र माना जाता है और क्षेत्र में इसे पूजा भी जाता है। राज्य में यही पानी का मुख्य स्त्रोत भी है।
मध्य प्रदेश की भाषा – Language of Madhya Pradesh
हिंदी मध्यप्रदेश की अधिकारिक भाषा और साथ ही राज्य में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा भी है। शहर में रहने वाले बहुत से व्यवसायी लोगो के लिए अंग्रेजी द्वितीय भाषा है।
बहुत सी जगहों और हिंदी और अंग्रेजी भाषा का उपयोग मिश्रित रूप से किया जाता है। राज्य की स्थानिक भाषाओ में मालवी, बुन्देली, बघेली और निमरी शामिल है। साथ ही राज्य में और भी दूसरी स्थानिक बोलियाँ बोली जाती है।
मध्य प्रदेश का पर्यटन – Tourism of Madhya Pradesh
चौथी शताब्दी में प्रसिद्ध संस्कृत कवी कालिदास ने प्रदेश का सुंदर विवरण “मेघदूतम” में किया है।
मध्यप्रदेश जैसा सुंदर और आकर्षक राज्य हर साल लाखो यात्रियों को आकर्षित करता है। और वर्तमान मध्यप्रदेश ने केवल अपनी प्राचीन सुंदरता ही नही बनाये रखी बल्कि वर्तमान यात्रियों के लिए विशेष आकर्षण का भी निर्माण कर रखा है। मध्यप्रदेश की पहाड़, जंगलो और नदियों की प्राकृतिक सुंदरता मनमोहक है। साथ ही यहाँ बहुत से वन्यजीव अभयारण्य भी है। मध्यप्रदेश राज्य की सांस्कृतिक विविधता भी देखने लायक है।
मध्यप्रदेश विन्ध्य और सतपुड़ा की पहाडियों से देदीप्यमान है। साथ ही यहाँ बहने वाली नदियों से इसका परिदृश्य और भी ज्यादा स्पष्ट हो जाता है।
मध्यप्रदेश में पहाड़ो के बीच से बहती हुई नदियों का रमणीक दृश्य निश्चित रूप से देखने योग्य है।
यहाँ के जंगल भी काफी घने है और वन्यजीव की विविध प्रजातियाँ हमें यहाँ के जंगलो में देखने मिलती है। मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ में हमें सफ़ेद टाइगर भी देखने मिलते है। साथ ही कान्हा नेशनल पार्क, बांधवगढ़, पेंच, शिवपुरी, पन्ना और दुसरे बहुत से राष्ट्रिय उद्यानों में हम वन्यजीव की विविध प्रजातियाँ देख सकते है।
भारत की संस्कृति में मध्यप्रदेश जगमगाते दीपक के समान है, जिसकी रौशनी का हमेशा अलग प्रभाव रहा है।
यह विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता का जैसे आकर्षक गुलदस्ता है, मध्यप्रदेश को प्रकृति ने जैसे अपने हाथो से सजाकर रखा है, जिसकी सतरंगी सुंदरता और मनमोहक सुगंध चारो ओर फैली है। यहाँ के लोक समूहों और जनजाति समूहों में रोज नृत्य, संगीत और गीत की रसधारा सहज रूप से बहती है। यहाँ का हर दिन उत्सव की तरह आता है और जीवन में आनंद भर देता है।
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