तराइन की लड़ाई : पृथ्वी राज चौहान का आखिरी युद्ध! | Battle of tarain

Mr. Parihar
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प्राचीन समय से ही भारत का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है. अंग्रेजों के आने से पहले भारत में कई साम्राज्य हुए, जिन्होंने विस्तारवादी नीतियाँ अपनाते हुए यहां खुद को स्थापित करने की कोशिश की. इस कारण समय-समय पर नए सम्राज्य बनते रहे और पुरानों का पतन होता रहा.
इस कोशिश में निर्णायक लड़ाईयां भी होती रहीं. इनमें कुछ काल के गाल में समा गईं, तो कुछ को इतिहास के पन्नों में जगह मिली. तराइन की लड़ाई उनमें से ही एक है.
यह लड़ाई दो युद्धों की एक श्रृंखला है, जो 1191 और 1192 में लड़े गए.
चूंकि, इसे भारतीय इतिहास की बड़ी लड़ाईयों में से एक माना जाता है, इसलिए इसके पहलुओं को जानना दिलचस्प रहेगा–

मोहम्मद गोरी ने रखी थी युद्ध की नींव

महमूद गज़नवी ने 998 से लेकर 1030 ईसवी तक भारत में राज किया. बाद में उसकी मृत्यु के बाद गौरी ने गजनी को अपने नियंत्रण कर लिया. सबसे पहले उसने खुद को मजबूत किया फिर भारत पर अपना ध्यान केंद्रित किया. पूर्वी ईरान से मोहम्मद गोरी ने भारत में अपनी फौज के साथ चढ़ाई की और भारत की ज़मी पर कब्जा जमाने का सिलसिला शुरु कर दिया.
1175 ई. के आसपास वह मुल्तान समेत लगभग पूरे सिंध पर कब्जा करने में सफल रहा. हालांकि, उसका मन इससे भी नहीं भरा तो वह आगे बढ़ा और 1186 में पंजाब पर हमला कर दिया.
वह यहीं नहीं रुका कई प्रांतो में कब्जा करने के बाद मोहम्मद गोरी के कदम पंजाब के भटिंडा की ज़मी पर जा पहुंचे, जो पृथ्वीराज चौहान की सत्ता में आता था. भटिंडा किले को फतह करने की मंशा से गोरी सेना ने वहां चढ़ाई शुरु कर दी.
पृथ्वीराज ने उसके इस दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब दिया.
1191 में उन्होंने तराइन में गोरी से दो-दो हाथ किए और उसे खदेड़ दिया. चूंकि यह युद्ध हरियाणा के एक छोटे शहर तराइन में लड़ा गया. इसलिए इस लड़ाई को तराइन की पहली लड़ाई का नाम दिया गया.

बुरी तरह हारने के बावजूद…
पृथ्वीराज चौहान की सेना से हारने के बाद मोहम्मद गोरी की हर जगह किरकरी हुई!
वह किसी भी तरह तराइन को फतह करना चाहता था. हर दिन तराइन को फतह करने के लिये उसने दूसरी लड़ाई शुरु करने के लिये मंसूबे बनाने शुरु कर दिये.
इसी कोशिश में पहली तराइन की लड़ाई में हारने के बाद मोहम्मद गोरी पूरे एक साल अपने परिवार से नहीं मिला था. असल में वह दूसरी लड़ाई की तैयारियों में जुटा था. उसके सिर पर तराइन को फ़तह करने का भूत सवार हो गया था. आख़िर एक साल तक कड़ी रणनीति बनाने के बाद 1192 ईसवीं में मोहम्मद गोरी ने अपने लश्कर के साथ हरियाणा के तराइन शहर की ओर चढ़ाई शुरु कर दी.
वहीं पृथ्वीराज चौहान को गोरी सेना द्वारा किये जा रहे हमले की तैयारियों की ख़बर पहले ही मिल चुकी थी. उन्होंने कुशल रणनीति बनाते हुये महत्वपूर्ण रास्तों को बंद कर दिया, ताकि गोरी सेना अचानक से तराइन में हमला न कर सके.
पृथ्वीराज चौहान को इस बात का अंदेशा हो चला था कि मोहम्मद गोरी पूरी तैयारियों के साथ तराइन में हमला करने की नीयत से घुस रहा है. उन्होंने अपनी क्षमता के अनुसार महत्वपूर्ण मार्गों पर आवागमन को बंद करा दिया, ताकि उसकी सेना को कुछ समय के लिये रोका जा सके. ऐसा करने से उन्हें दुश्मन के खिलाफ रणनाति बनाने का मौका जो मिल जाता.
पृथ्वीराज चौहान

खूब लड़े पृथ्वीराज चौहान, लेकिन…
1192 ईसवीं में मोहम्मद गोरी ने एक बार फिर से तराइन में चढ़ाई कर दी. उसने हजारों सैनिकों की मदद से पृथ्वीराज चौहान के साम्राज्य को घेर लिया था. बावजूद उसके पूथ्वीराज के नेतृत्व में उनकी सेना ने मोहम्मद गोरी का डट कर मुकाबला किया.
कहा जाता है मोहम्मद गोरी की फौज में एक हजार फौजी थे, वहीं बीस हजार लड़ाकुओं का लश्कर था. कुल मिलाकर उसकी सेना पृथ्वीराज चौहान की सेना से बहुत ज्यादा थी. इस कारण वह अपना दबदबा बनाने में कामयाब रहा. हालांकि, पूथ्वीराज चौहान ने अपनी सेना के साथ उसका डटकर मुकाबला किया. वह बात और है कि अंत में वह अपनी हार को टाल नहीं सके.
यही नहीं पृथ्वीराज चौहान बंधक तक बना लिए गए. बंधक बनाते ही मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखों को गर्म सलाखों से जला दिया और कई अमानवीय यातनाएं भी दी. अंतत: मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को मारने का फैसला कर लिया था.
वह तो ‘चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान.’ मित्र चंदबरदाई की इन पंक्तियों ने अंतिम समय में पृथ्वीराज चौहान में जान फूंकी और वह मुहम्मद गौरी को मारने में कामयाब रहे.
हुआ यूं था कि इससे पहले कि मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज को मार डालता, राजकवि चंदबरदाई ने गोरी को पृथ्वीराज की एक खूबी बतायी कि पृथ्वीराज चौहान, शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर है. वह आवाज सुन कर तीर चला सकते हैं. यह बात सुन मोहम्मद गोरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश दिया, जिसके फलस्वरूम वह मारा गया.
गौरी के मारे जाने के बाद उसकी सेना से बचने के लिए चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे के पेट में कटार भोंक कर आत्म बलिदान कर दिया.
Prithviraj Chauahn  
बताते चलें कि पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को पहले ही युद्धों में 16 बार धूल चटायी थी, लेकिन हर बार उसे जीवित छोड़ दिया. 17 वीं बार भी वह पृथ्वीराज को नहीं हरा पाते अगर उनके ससुर राजा जयचंद ने उनसे दुश्मनी निभाते हुए गोरी का साथ न दिया होता.
असल में पृथ्वीराज ने राजा जयचंद के खिलाफ जाकर उनकी बेटी संयोगिता को भगाकर उनसे शादी की थी. इस बात से वह बहुत आहत थे और किसी भी कीमत पर पृथ्वीराज को मारना चाहते थे.
गोरी से हाथ मिलाने से वह अपनी योजना में सफल ही रहे, किन्तु इस कारण उन्हें अपनी बेटी के जान से भी हाथ धोना पड़ा था, क्योंकि जब उन्हें इस बात का पता चला तो उन्होंने सती होकर अपना जीवन खत्म कर लिया था.
तभी से गद्दारों के प्रतीक रूप में जयचंद का नाम कुख्यात हो गया! आप क्या कहेंगे तराइन के युद्ध और जयचंद की गद्दारी के बारे में?

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