हिंदू नववर्ष 2019: जानिए, क्या है नवसंवत्सर का महत्व और इतिहास
एक जनवरी से प्रारम्भ अंग्रेजी नव वर्ष को हम इतना महत्व देते हैं पर क्या अपनी महान एवं सनातन संस्कृति से जुड़े नव वर्ष की तरफ भी हमारा वही भाव वही समर्पण बन पाता है ! ...नहीं, पर आखिर क्युं ऐसा है? हमारी नयी पीढ़ी को अपनी प्राचीन एवं अतुलनीय संस्कृति को संभालना एवं ससम्मान इसका प्रचार भी करना होगा क्योंकि ये "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' और 'वसुधैव कुटुम्बकम्" की बात करती है।
आइये अब थोड़ा नव वर्ष की परम्परा पर भी चर्चा कर ली जाय।
एक जनवरी से प्रारंभ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका सम्बन्ध ईसाई जगत व ईसा मसीह से है । इसे रोम के सम्राट जुलियस सीज़र द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया । भारत में ईस्वी संवत् का प्रचलन अंग्रेजी शासको ने 1752 में किया । 1752 से पहले ईस्वी सन् 25 मार्च से शुरू होता था किन्तु 18 वीं शताब्दी से इसकी शुरूआत एक जनवरी से होने लगी । जनवरी से जून रोमन के नामकरण रोमन जोनस,मार्स व मया इत्यादि के नाम पर हैं । जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट जूलियस सीजर तथा उसके पौत्र आगस्टन के नाम पर तथा सितम्बर से दिसम्बर तक रोमन संवत् के मासो के आधार पर रखे गये हैं ।
क्या ये आधार सही है? काल गणना का आधार तो ग्रहो और नक्षत्रो की स्थिती पर आधारित होनी चाहिये।
ग्रेगेरियन केलेण्ड़र की काल गणना मात्र दो हजार वर्षो की अतिअल्प समय को दर्शाती है । जबकि यूनान की काल गणना 1582 वर्ष, रोम की 2757 वर्ष, यहूदी 5768, मिस्त्र की 28691, पारसी 198875 तथा चीन की 96002305 वर्ष पुरानी है । इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 110 वर्ष है । जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं । हमारे प्राचीन ग्रंथो में एक एक पल की गणना की गई है ।
दो हजार वर्ष पहले शकों ने सौराष्ट्र और पंजाब को रौंदते हुए अवंतिका पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। विक्रमादित्य ने राष्ट्रीय शक्तियों को एक सूत्र में पिरोया और शक्तिशाली मोर्चा खड़ा करके ईसा पूर्व 57 में शकों पर भीषण आक्रमण कर विजय प्राप्त की। थोड़े समय में ही इन्होंने कोंकण, सौराष्ट्र, गुजरात और सिंध भाग के प्रदेशों को भी शकों से मुक्त करवा लिया। वीर विक्रमादित्य ने शकों को उनके गढ़ अरब में भी करारी मात दी। इसी सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर भारत में विक्रमी संवत प्रचलित हुआ। सम्राट पृथ्वीराज के शासनकाल तक इसी संवत के अनुसार कार्य चला। इसके बाद भारत में मुगलों के शासनकाल के दौरान सरकारी क्षेत्र में हिजरी सन चलता रहा। भारतीय सरकार ने शक संवत को अपनाया।
जिस प्रकार ईस्वी संवत् का सम्बन्ध ईसा से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मोहम्मद से है । किन्तु विक्रम संवत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न होकर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रम्हाण्ड़ के ग्रहो व नक्षत्रो से है । इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है । इतना ही नहीं, ब्रम्हाण्ड़ के सबसे पुरातन ग्रंथो वेदो में भी इसका वर्णन है ।
नव संवत् यानि संवत्सरो का वर्णन यजूर्वेद के 27 वें व 30 वें अध्याय ले मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है । विश्व को सौर मण्ड़ल के ग्रहों व नक्षत्रो की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिती पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग पर आधारित है ।
नव संवत् यानि संवत्सरो का वर्णन यजूर्वेद के 27 वें व 30 वें अध्याय ले मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15 में विस्तार से दिया गया है । विश्व को सौर मण्ड़ल के ग्रहों व नक्षत्रो की चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिती पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग पर आधारित है ।
इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही पाश्यात्य देशो के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारंभ करने की बात हो हम एक कुशल पंड़ित के पास जाकर शुभ मुहूर्त पुछते हैं ।
और तो और, देश के बड़े से बड़े राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतज़ार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचाग पर आधारित होता है ।
भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम शुभ मुहूर्त में किया जाए तो उसकी सफलता में चार चाँद लग जाते हैं । अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय नववर्ष मनाना ईसाई नववर्ष मनाने से पुर्णरूपेण श्रेष्ठ है ।
और तो और, देश के बड़े से बड़े राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतज़ार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विक्रमी संवत् के पंचाग पर आधारित होता है ।
भारतीय मान्यतानुसार कोई भी काम शुभ मुहूर्त में किया जाए तो उसकी सफलता में चार चाँद लग जाते हैं । अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय नववर्ष मनाना ईसाई नववर्ष मनाने से पुर्णरूपेण श्रेष्ठ है ।
भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक महत्व :
वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
1. यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
2. विक्रमी संवत का पहला दिन: उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, और न ही कोई भिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो। सम्राट विक्रमादित्य ने 2067 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था।
3. प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।
4. नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात्, नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
5. गुरू अंगददेव प्रगटोत्सव : सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्म दिवस।
6. समाज को श्रेष्ठ (आर्य) मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
7. संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
8. शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
9. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : 5112 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
भारतीय सांस्कृतिक जीवन का विक्रमी संवत् से गहरा नाता है। भरतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है जिसे विक्रम संवत् का नवीन दिवस भी कहा जाता है । स्वामी विवेकानन्द ने कहा था - यदि हमें गौरव से जीने का भाव जगाना है, अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति के बीज को पल्लवित करना है तो राष्ट्रीय तिथियों का आश्रय लेना होगा।
गुलाम बनाए रखने वाले परकीयों की दिनांकों पर आश्रित रहनेवाला अपना आत्म गौरव खो बैठता है। यह दिन हमारे मन में यह उदघोष जगाता है कि हम पृथ्वी माता के पुत्र हैं, सूर्य, चन्द्र व नवग्रह हमारे आधार हैं प्राणी मात्र हमारे पारिवारिक सदस्य हैं। तभी हमारी संस्कृति का बोध वाक्य ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम‘‘ का सार्थक्य सिद्ध होता है।
ध्यान रहे कि सामाजिक विश्रृंखलता की विकृतियों ने भारतीय जीवन में दोष एवं रोग भर दिया, फलतरू कमजोर राष्ट्र के भू भाग पर परकीय, परधर्मियों ने आक्रमण कर हमें गुलाम बना दिया। सदियों पराधीनता की पीड़ाएं झेलनी पड़ी। पराधीनता के कारण जिस मानसिकता का विकास हुआ, इससे हमारे राष्ट्रीय भाव का क्षय हो गया और समाज में व्यक्तिवाद, भय एवं निराशा का संचार होने लगा।
जिस समाज में भगवान श्रीराम, कृष्ण, बुद्ध महावीर, नानक व अनेक ऋषि-मुनियों का आविर्भाव हुआ। जिस धराधाम पर परशुराम, विश्वामित्र, वाल्मिकी, वशिष्ठ, भीष्म एवं चाणक्य जैसे दिव्य पुरुषों का जन्म हुआ।
जहां परम प्रतापी राजा-महाराजा व सम्राटों की श्रृंखला का गौरवशाली इतिहास निर्मित हुआ उसी समाज पर शक, हुण, डच, तुर्क, मुगल, फ्रांसीसी व अंग्रेजों जैसी आक्रान्ता जातियों का आक्रमण हो गया।
यह पुण्यभूमि भारत इन परकीय लुटेरों की शक्ति परीक्षण का समरांगण बन गया और भारतीय समाज के तेजस्वी, ओजस्वी और पराक्रमी कहे जाने वाले शासक आपसी फूट एवं निज स्वार्थवश पराधीन सेना के सेनापति की भांति सब कुछ सहते तथा देखते रहे। जो जीत गये उन्होनें हम पर शासन किया और अपनी संस्कृति अपना धर्म एवं अपनी परम्परा का विष पिलाकर हमें कमजोर एवं रुग्ण किया।
किन्तु इस राष्ट्र की जिजीविषा ने, शास्त्रों में निहित अमृतरस ने इस राष्ट्र को मरने नहीं दिया। भारतीय नवसम्वत के दिन लोग पूजापाठ करते हैं और तीर्थ स्थानों पर जाते हैं। लोग इस दिन तामसी पदार्थों से दूर रहते हैं, पर विदेशी नववर्ष के आगमन से घंटों पूर्व ही मांस मदिरा का प्रयोग, अश्लील-अश्लील कार्यक्रमों का रसपान तथा बहुत कुछ ऐसा प्रारंभ हो जाता है जिससे अपने देश की संस्कृति का रिश्ता नहीं है। विक्रमी संवत के स्मरण मात्र से ही विक्रमादित्य और उनके विजय अभिमान की याद ताजा होती है, भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊंचा होता है, जबकि ईसवी वर्ष के साथ ही दासता एवं गुलामी की बू आने लगती है।
गुलाम बनाए रखने वाले परकीयों की दिनांकों पर आश्रित रहनेवाला अपना आत्म गौरव खो बैठता है। यह दिन हमारे मन में यह उदघोष जगाता है कि हम पृथ्वी माता के पुत्र हैं, सूर्य, चन्द्र व नवग्रह हमारे आधार हैं प्राणी मात्र हमारे पारिवारिक सदस्य हैं। तभी हमारी संस्कृति का बोध वाक्य ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम‘‘ का सार्थक्य सिद्ध होता है।
ध्यान रहे कि सामाजिक विश्रृंखलता की विकृतियों ने भारतीय जीवन में दोष एवं रोग भर दिया, फलतरू कमजोर राष्ट्र के भू भाग पर परकीय, परधर्मियों ने आक्रमण कर हमें गुलाम बना दिया। सदियों पराधीनता की पीड़ाएं झेलनी पड़ी। पराधीनता के कारण जिस मानसिकता का विकास हुआ, इससे हमारे राष्ट्रीय भाव का क्षय हो गया और समाज में व्यक्तिवाद, भय एवं निराशा का संचार होने लगा।
जिस समाज में भगवान श्रीराम, कृष्ण, बुद्ध महावीर, नानक व अनेक ऋषि-मुनियों का आविर्भाव हुआ। जिस धराधाम पर परशुराम, विश्वामित्र, वाल्मिकी, वशिष्ठ, भीष्म एवं चाणक्य जैसे दिव्य पुरुषों का जन्म हुआ।
जहां परम प्रतापी राजा-महाराजा व सम्राटों की श्रृंखला का गौरवशाली इतिहास निर्मित हुआ उसी समाज पर शक, हुण, डच, तुर्क, मुगल, फ्रांसीसी व अंग्रेजों जैसी आक्रान्ता जातियों का आक्रमण हो गया।
यह पुण्यभूमि भारत इन परकीय लुटेरों की शक्ति परीक्षण का समरांगण बन गया और भारतीय समाज के तेजस्वी, ओजस्वी और पराक्रमी कहे जाने वाले शासक आपसी फूट एवं निज स्वार्थवश पराधीन सेना के सेनापति की भांति सब कुछ सहते तथा देखते रहे। जो जीत गये उन्होनें हम पर शासन किया और अपनी संस्कृति अपना धर्म एवं अपनी परम्परा का विष पिलाकर हमें कमजोर एवं रुग्ण किया।
किन्तु इस राष्ट्र की जिजीविषा ने, शास्त्रों में निहित अमृतरस ने इस राष्ट्र को मरने नहीं दिया। भारतीय नवसम्वत के दिन लोग पूजापाठ करते हैं और तीर्थ स्थानों पर जाते हैं। लोग इस दिन तामसी पदार्थों से दूर रहते हैं, पर विदेशी नववर्ष के आगमन से घंटों पूर्व ही मांस मदिरा का प्रयोग, अश्लील-अश्लील कार्यक्रमों का रसपान तथा बहुत कुछ ऐसा प्रारंभ हो जाता है जिससे अपने देश की संस्कृति का रिश्ता नहीं है। विक्रमी संवत के स्मरण मात्र से ही विक्रमादित्य और उनके विजय अभिमान की याद ताजा होती है, भारतीयों का मस्तक गर्व से ऊंचा होता है, जबकि ईसवी वर्ष के साथ ही दासता एवं गुलामी की बू आने लगती है।
मोरारजी देसाई को जब किसी ने पहली जनवरी को नववर्ष की बधाई दी तो उन्होंने उत्तर दिया था- किस बात की बधाई? मेरे देश और देश के सम्मान का तो इस नववर्ष से कोई संबंध नहीं। यही हम लोगों को भी समझना और समझाना होगा। क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके ? आइये! विदेशी को फैंक स्वदेशी अपनाऐं और गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानि विक्रमी संवत् को ही मनायें तथा इसका अधिक से अधिक प्रचार करें।
आज चैत्र प्रतिपदा है। आज से भारतीय नव वर्ष प्रारंभ हो जाएगा। हमने विक्रमी संवत् 2073 को अलविदा कह नये वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। आज से महीने की शुरुआत तो ही रही है, साथ ही नवदुर्गा की भी शुरुआत हो रही है।
भारतीय नववर्ष का पहला दिन यानी सृष्टि का आरम्भ दिवस, युगाब्द और विक्रम संवत् जैसे प्राचीन संवत का प्रथम दिन, श्रीराम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस, मां दुर्गा की साधना चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस, आर्य समाज का स्थापना दिवस, संत झूलेलाल जयंती, आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन के संस्थापक, प्रखर देशभक्त डॉ केशवराव हेडगेवार जी जन्मदिवस।
वास्तव में ये वर्ष का सबसे श्रेष्ठ दिवस है। हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। ब्रह्मपुराण के अनुसार पितामह ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टिनिर्माण प्रारम्भ किया था, इसलिए यह सृष्टि का प्रथम दिन है। इसकी काल गणना बड़ी प्रचीन है। सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक 1 अरब, 95 करोड़, 58 लाख, 85 हजार, 111 वर्ष बीत चुके हैं।
यह गणना ज्योतिष विज्ञान के द्वारा निर्मित है। आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्पत्ति का समय एक अरब वर्ष से अधिक बता रहे है। अपने देश में कई प्रकार की कालगणना की जाती है जैसे- युगाब्द (कलियुग का प्रारम्भ), श्री कृष्णच संवत्, शक संवत् आदि हैं।
हिन्दु शास्त्रानुसार इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारम्भ गणितीय और खगोलशास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। प्रतिपदा हमारे लिये क्यों महत्वपूर्ण है, इसके सामाजिक एवं ऐतिहासिक सन्दर्भ हैं-
इसी तिथि को रेवती नक्षत्र में विष्कुम्भ योग में दिन के समय भगवान के आदि अवतार मत्स्य रूप का प्रादुभाव भी माना जाता है।
युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था.
मर्यादा पुरूषोत्ततम श्रीराम का राज्याभिषेक।
मां दुर्गा की उपासना का नवरात्र व्रत प्रारम्भ
युगाब्द (युधिष्ठिनर संवत्) का आरम्भ
उज्जयिनी सम्राट- विक्रामादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ।
शालिवाहन शक् संवत्
महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना।
किसानो के लिए यह नव वर्ष के प्रारम्भ का शुभ दिन माना जाता है। इस तरह हम देखते हैं कि चैत्र प्रतिपदा का यह पहला दिन कई मायनों में महत्वपूर्ण है। आप सभी को नववर्ष की शुभ और मंगलकामनाएं।
जय हिन्द