रहीम के 25 अनमोल दोहे | Rahim ke Dohe In Hindi

Mr. Parihar
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रहीम दास के लोकप्रिय दोहे 



1. दोहा – "रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय | टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय"

अर्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नही होता| यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है, तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है|

2. दोहा – तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान |
अर्थ: रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।


3. दोहा – “रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत | काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत |”
अर्थ : गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न तो दुश्मनी. जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता |

4.दोहा – “एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय | रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय |”
अर्थ: एक को साधने से सब सधते हैं. सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है – वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है |


5. दोहा – “रहिमन विपदा हु भली, जो थोरे दिन होय | हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय |”
अर्थ : यदि संकट कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही हैं, क्योकी संकट में ही सबके बारेमें जाना जा सकता हैं की दुनिया में कौन हमारा अपना हैं और कौन नहीं |

6. दोहा – “रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत | काटे चाटे स्वान के, दोउ भांति विपरीत |”

अर्थ : कम दिमाग वाले व्यक्तियों से ना दोस्ती और ना ही दुश्मनी अच्छी होती हैं | जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों को विपरीत नहीं माना जाता है |

7. दोहा – “रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि | जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवार |”
अर्थ: बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती।

8. दोहा – “रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय | सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय |”
अर्थ : रहीम कहते हैं की अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता |

9. दोहा – “रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार | रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार |”
अर्थ : यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए |

10. दोहा – “बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय | रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय |”
अर्थ : मनुष्य को सोचसमझ कर व्यवहार करना चाहिए,क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा |

11. दोहा – “समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात | सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात |”
अर्थ : रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है. सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है |

12. दोहा – “जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह | धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह |”
अर्थ : रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है, सहन करनी चाहिए क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार हमारे शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए |

13. दोहा – “रहिमन’ पैड़ा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल | बिलछत पांव पिपीलिको, लोग लदावत बैल |”
अर्थ : प्रेम की गली में कितनी ज्यादा फिसलन है! चींटी के भी पैर फिसल जाते हैं इस पर। और, हम लोगों को तो देखो, जो बैल लादकर चलने की सोचते है! (दुनिया भर का अहंकार सिर पर लाद कर कोई कैसे प्रेम के विकट मार्ग पर चल सकता है? वह तो फिसलेगा ही।)

14. दोहा – “मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय | ‘रहिमन’ सोई मीत है, भीर परे ठहराय |”
अर्थ : सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है? मक्खन मथते-मथते रह जाता है, किन्तु मट्ठा दही का साथ छोड़ देता है |

15. दोहा – “रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत | हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत |”
अर्थ : ऐसी जगह कभी नहीं जाना चाहिए, जहां छल-कपट से कोई अपना मतलब निकालना चाहे। हम तो बड़ी मेहनत से पानी खींचते हैं कुएं से ढेंकुली द्वारा, और कपटी आदमी बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं।

16. दोहा – “जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं | गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं |”
अर्थ : रहीम अपने दोहें में कहते हैं की किसी भी बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन कम नहीं होता, क्योकी गिरिधर को कान्हा कहने से उनकी महिमा में कमी नहीं होती |

17. दोहा – “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग | चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग |”
अर्थ : रहीम ने कहा की जिन लोगों का स्वभाव अच्छा होता हैं, उन लोगों को बुरी संगती भी बिगाड़ नहीं पाती, जैसे जहरीले साप सुगंधित चन्दन के वृक्ष को लिपटे रहने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं दाल पाते |

18. दोहा – “दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं | जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं |”
अर्थ : रहीम कहते हैं की कौआ और कोयल रंग में एक समान काले होते हैं. जब तक उनकी आवाज ना सुनायी दे तब तक उनकी पहचान नहीं होती लेकिन जब वसंत रुतु आता हैं तो कोयल की मधुर आवाज से दोनों में का अंतर स्पष्ट हो जाता हैं |

19. दोहा – “वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग | बाँटन वारे को लगे, ज्यो मेहंदी को रंग |”
अर्थ : रहीमदास जी ने कहा की वे लोग धन्य हैं, जिनका शरीर हमेशा सबका उपकार करता हैं | जिस प्रकार मेहंदी बाटने वाले पर के शरीर पर भी उसका रंग लग जाता हैं | उसी तरह परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता हैं |

20. दोहा – “छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात | कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात |”
अर्थ : उम्र से बड़े लोगों को क्षमा शोभा देती हैं, और छोटों को बदमाशी. मतलब छोटे बदमाशी करे तो कोई बात नहीं बड़ो ने छोटों को इस बात पर क्षमा कर देना चाहिये. अगर छोटे बदमाशी करते हैं तो उनकी मस्ती भी छोटी ही होती हैं. जैसे अगर छोटासा कीड़ा लाथ भी मारे तो उससे कोई नुकसान नहीं होता.
 

21. दोहा :- “दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय | जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय |”
अर्थ : दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं. सुख में कोई नहीं करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नही |

22. दोहा – “खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान. रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान |”
अर्थ : सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खाँसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता हैं |

23. दोहा – “जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय | प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय |”
अर्थ : लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत इतराते हैं. वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में ज्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लता हैं |

24. दोहा – “चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह | जिनको कुछ नहीं चाहिये, वे साहन के साह |”
अर्थ : जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिये वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं |

25. दोहा – “जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड | कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग |”
अर्थ : जो लोग गरिब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं. जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना हैं |

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